Rudrabhishek (रुद्राभिषेक) and Importance of Rudrabhishek (और रुद्राभिषेक का महत्त्व)
रुद्राभिषेक क्या है ?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।
What is rudrabhishek ?
The word Abhishek literally means bathing or doing. Rudrabhisheka means the consecration of Lord Rudra, that is, the consecration of Lord Shiva through the mantras of Rudra. This holy-bath is performed to Rudraparup Shiva.
वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
At present, Abhishek is only as a follower of Rudrabhishek. There are many forms and types of consecration. The best way to process Shiva is to perform Rudrabhisheka or to get it done by the best Brahmin scholars. By the way, Lord Shiva has been considered as water-grabbing by holding the Ganga in his womb.
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।
Why Rudrabhishek is done ?
According to Rudrashtadhyayi, Shiva is Rudra and Rudra is Shiva. Rutam-dukham, Darvaayati-Nashayatir-Rudra: In the Rudra form, the revered Shiva will end all our sorrows soon. In fact, the reason we suffer is that we all are ourselves, we suffer from the consequences of conduct against the unknowable nature.
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ।
How did rudrabhishek begin
According to the legend, Brahma ji originated from a lotus originated from the navel of Lord Vishnu. When Brahmaji came to Lord Vishnu to find out the reason for his birth, he told the secret of the origin of Brahma and also said that it was because of me that you were born. But Brahmaji was not ready to accept this and both of them had a fierce battle.
इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।
An angry Lord Rudra appeared in the form of this war. When Brahma and Vishnu did not know the beginning end of this linga, they gave up and anointed the linga, which pleased God. It is said that this is where RudraBhishek started.
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा - हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है
According to another legend, Lord Shiva was once sitting on the family Taurus and was vihara. At the same time, Goddess Parvati saw the people in Rudrabhishek Karma in mortal world, then curiosity to Lord Shiva, why are you worshiped in this way, O Nath mortal? And what is the result? Lord Shiva said - O dear! The man who wants to fulfill his wish soon
वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।
He anoints me to receive various fruits from various liquids. The person who is anointed by Shuklajurvedy Rudrachhathyapi, I am pleased and provide the desired results.
जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।
The person who performs Rudrabhishek for the fulfillment of his desire, he uses the same kind of liquids, that is, if someone does Rudrabhishek with the desire to get a vehicle, then he should be anointed with curd, if any disease wants to get rid of sorrow then Anointing or doing with the water of Kusha should be done.
शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
Shiva is called Rudra. Because- Rutam-dukham, Dada-Naytati Tiriradra: I mean, the innocent kill all the sorrows. According to our scriptures, the sins committed by us are due to our sorrows. Rudrabhishek is considered the best way of worshiping Shiva. Rudra is a form of Shiva. Rudrabhishek Mantras have also been described in Rig Veda, Yajurveda and Samaveda. It is described in the scriptures and Vedas that consecration of Shiva is the ultimate welfare.
रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
Our sins are also consumed by Rudracharna and Rudrabhishek, and Shiva is born in the seeker and the devotee receives the goodwill of Lord Shiva, and all his desires are fulfilled. It is said that the worship of all the Gods is worshiped only by worshiping the only Sadashiva Rudra. It is said about Shiva in Rudra-Hridayapanishad that Sarvadevastako Rudra: Surva Deva: Shivatma: meaning Rudra is present in the soul of all Gods and all the gods are the soul of Rudra.
रुद्राभिषेक की विधि
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।
Method of rudrabhishek
However, RudraBhishek can be done on any day, but it is the ultimate welfare work to do on the Triodshi date, Pradosh period and Monday. Rudrabhishek done on any day in the month of Shravan is amazing and gives quick results.
इसके लिये आवश्यक सामग्री पहले ही एकत्रित करलें। सामग्री बाल्टी अथवा बड़ा पात्र जल के लिये संभव हो तो गंगाजल से अभिषेक करे। श्रृंगी (गाय के सींग से बना अभिषेक का पात्र) श्रृंगी पीतल एवं अन्य धातु की भी बाजार में सहज उपलब्ध हो जाती है।, लोटा आदि।
For this, collect the necessary materials in advance. If possible, for a bucket of water or a large vessel, anoint it with Ganga water. Shrungi (the character of Abhishek made from cow's horn) Shringi Brass and other metals are also easily available in the market, Lota etc.
रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
The eleventh frequency of the Rudrhatadhyayi's ecliptic Rudri is recited. This is called the small Rudra. This is the worship performed from Panchamrit. This puja is considered very important.
प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
Puja is performed by influential chants and scientifically learned Brahmin. This worship will get rid of the sorrow and negative energy coming in life.
ब्राह्मण के अभाव में स्वयं भी संस्कृत ज्ञान होने पर रुद्राष्टाध्यायी के पाठ से अथवा अन्य परिस्थितियों में शिवमहिम्न का पाठ करके भी अभिषेक किया जा सकता है। इस सबकी सुविधा ना होने पर भी निम्नलिखित मंत्रो से भी महादेव को स्नान एवं अभिषेक करने से बहुत पूण्य मिलता है।
In the absence of a Brahmin, having knowledge of Sanskrit itself can be anointed with the recitation of Rudrashtadhyayi or in other circumstances by reciting the Siva Mahima. Even after not having all this facility, Mahadev gets very complete from bathing and anointing from the following chants.
रुद्राभिषेक कैसे किया जाता है? भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए भगवान शिव के मंत्रों की आवश्यकाता होती है ओर यजुर्वेद में भगवान शिव के रुद्राष्टाध्यायी मंत्र है। यजुर्वेद का अंग है रुद्राष्टाध्यायी, जिसमें भगवान शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान किया गया है। यजुर्वेद ग्रंथ में दस अध्याय हैं लेकिन इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा व उनकी कृपा शक्ति का वर्णन किया गया है। इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है। शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है। रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ किया जाता है। शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ 1या 11 बार, शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ, कृष्णा यजुर्वेदीय पाठ का “नमक” पाठ 11 बार। हर पाठ के बाद “चमक” पाठ के एक श्लोक का पाठ (एकादश रूद्र पाठ ) रुद्राभिषेक में शिव सहस्रनाम का पाठ भी किया जाता है। अंत में रूद्र सुक्त का पाठ किया जाता है। इस तरह से पाठ करते हुए अभिषेक करने को ही रुद्राभिषेक कहा जाता है। किसी भी पूजा से पहले भगवान श्री गणेश का पूजन किया जाता है। तो आईए करते है भगवान शिव का रुद्राभिषेक । श्री गणेश के पूजा मंत्र और पूजा विधि- भगवान श्री गणेश पूजा विधि सर्वप्रथम निम्न मंत्र से अखण्ड दीपक जलाना चाहिए। ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते। निम्न मंत्र पढ़ते हुए अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित करें। ॐ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।। उसके बाद हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्न मन्त्रों से गणपति का ध्यान करें। गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। भगवान गणेश का आवाहन ॐ गणानां त्वा गणापतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय शिवाय च। इशानाय मखन्घाय नमस्ते मखघाति ने॥ कुमार गुरवे नित्यं नील ग्रीवाय वेधसे। हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय च सुरेतसे॥
विलोहिताय धूम्राय व्याधिने नपराजिते॥ नित्यं नील शीखंडाय शूलिने दिव्य चक्षुषे। अचिंत्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्व देवस्तुताय च। नमो नमस्ते सत्याय भूतानां प्रभवे नमः।
वृषभध्वजाय मुंडाय जटिने ब्रह्मचारिणे॥ तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च। विश्र्वात्मने विश्र्वसृजे विश्र्वमावृत्य तिष्टते॥ सहस्त्र नेत्र पादाय नमो संख्येय कर्मणे॥
पंचवक्त्राय शर्वाय शंकाराय शिवाय च॥ नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः। नमो विश्र्वस्य पतये महतां पतये नमः॥ नमः सहस्त्र शीर्षाय सहस्त्र भुज मन्यथे।
सर्व प्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें और ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें। ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें। पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें। शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें। अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें। शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।
रुद्राभिषेक कैसे किया जाता है? भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए भगवान शिव के मंत्रों की आवश्यकाता होती है ओर यजुर्वेद में भगवान शिव के रुद्राष्टाध्यायी मंत्र है। यजुर्वेद का अंग है रुद्राष्टाध्यायी, जिसमें भगवान शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान किया गया है। यजुर्वेद ग्रंथ में दस अध्याय हैं लेकिन इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा व उनकी कृपा शक्ति का वर्णन किया गया है। इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है। शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है। रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ किया जाता है। शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ 1या 11 बार, शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ, कृष्णा यजुर्वेदीय पाठ का “नमक” पाठ 11 बार। हर पाठ के बाद “चमक” पाठ के एक श्लोक का पाठ (एकादश रूद्र पाठ ) रुद्राभिषेक में शिव सहस्रनाम का पाठ भी किया जाता है। अंत में रूद्र सुक्त का पाठ किया जाता है। इस तरह से पाठ करते हुए अभिषेक करने को ही रुद्राभिषेक कहा जाता है। किसी भी पूजा से पहले भगवान श्री गणेश का पूजन किया जाता है। तो आईए करते है भगवान शिव का रुद्राभिषेक । श्री गणेश के पूजा मंत्र और पूजा विधि- भगवान श्री गणेश पूजा विधि सर्वप्रथम निम्न मंत्र से अखण्ड दीपक जलाना चाहिए। ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजा दीप नमोस्तु ते। निम्न मंत्र पढ़ते हुए अखण्ड दीप प्रज्ज्वलित करें। ॐ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।। उसके बाद हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्न मन्त्रों से गणपति का ध्यान करें। गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। भगवान गणेश का आवाहन ॐ गणानां त्वा गणापतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ग हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
रूद्र सुक्त पाठ Rudra Sukta paath
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति। दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥ येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥ यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥ येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥ यस्मिन्नृचः साम यजूं गुँ षि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः। यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव। हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥६॥शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् Shiv panchakshar stotra
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥ मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय। मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय॥ पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् Dwadash jyotirlinga Stotram
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रिशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोमकारममलेश्वरम्॥
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे।
अन्यथा शरणम् नाऽस्ति, त्वमेव शरणम् मम्।
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
ॐ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च।
तस्मात्कारूण भावेन्, रक्ष माम् महेश्वर:॥
लघुरुद्राभिषेक laghu rudrabhishekam
ॐ ॐ सर्वदेवेभ्यो नम : पशुनां पतये नित्यं उग्राय च कपर्दिने॥ पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा।महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय शिवाय च। इशानाय मखन्घाय नमस्ते मखघाति ने॥ कुमार गुरवे नित्यं नील ग्रीवाय वेधसे। हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय च सुरेतसे॥
विलोहिताय धूम्राय व्याधिने नपराजिते॥ नित्यं नील शीखंडाय शूलिने दिव्य चक्षुषे। अचिंत्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्व देवस्तुताय च। नमो नमस्ते सत्याय भूतानां प्रभवे नमः।
वृषभध्वजाय मुंडाय जटिने ब्रह्मचारिणे॥ तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च। विश्र्वात्मने विश्र्वसृजे विश्र्वमावृत्य तिष्टते॥ सहस्त्र नेत्र पादाय नमो संख्येय कर्मणे॥
पंचवक्त्राय शर्वाय शंकाराय शिवाय च॥ नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः। नमो विश्र्वस्य पतये महतां पतये नमः॥ नमः सहस्त्र शीर्षाय सहस्त्र भुज मन्यथे।
॥ इति शुभम्॥
नमो हिरण्य वर्णाय हिरण्य क्वचाय च।
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो॥
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः।
प्रसादयामास भवं तदा शस्त्रोप लब्धये॥
॥ॐ मृत्युंजय मंत्र॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
ॐ त्र्यम्बकँ य्यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारूकमिव बन्धनान्न्मृत्योर्म्मुक्षीय मामृतात्।
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम्॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
जल से अभिषेक
दूध से अभिषेक
भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें और अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें। दूध से अभिषेक होने के बाद शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।
फलों का रस
भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें और ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर अभिषेक करें। इसके बाद शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।
सरसों के तेल से अभिषेक
शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें। इसके बाद शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।
चने की दाल
काले तिल से अभिषेक
शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें। अभिषेक करने के बाद शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।
रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें। अभिषेक के बाद शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें और शिवलिंग को साफ पौंछ ले।
ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें। काले तिल का अभिषेक करे। अभिषेक करने के बाद शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें।
शहद मिश्रित गंगा जल
ताम्बे के पात्र में ‘’शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर अभिषेक करना चाहिए। शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति मिलती है।
घी व शहद
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
दही से अभिषेक
दही से अभिषेक करने के बाद शुद्ध जल से अभिषेक करें और शिवलिंग को साफ पौंछ लें।
पंचामृत से अभिषेक
पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए और अंत में शुद्ध जल से अभिषेक करें और शिवलिंग को साफ पौंछ लें। अब भगवान शिव का श्रंगार करें। आकर्षक व्यक्तित्व को प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से भी अभिषेक करें और फूल मालाओं को अप्रित करें।
अभिषेक को समाप्त करने के बाद क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए। क्योंकि मंत्रों को पढ़ने में या अन्य किसी भी प्रकार से हुए अपराध के लिए क्षमा-प्रार्थना करना आवश्यक होता है।
ॐ अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः।।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
नोट-: वेदों के सभी मंत्र बहुत ही प्रभावशाली होते है इसलिए वेदों के किसी भी मंत्रो का पाठ पूर्ण शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाना चाहिए। इस प्रकार की पूजा और अभिषेक से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।