ध्वज और पताका अलग-अलग होते हैं दोनों को ही हम झंडा मान सकते हैं। पताका त्रिकोणाकार होती है जबकि ध्वजा चतुष्कोणीय। प्रत्येक हिन्दू देवी या देवता अपने साथ अस्त्र-शस्त्र तो रखते ही हैं साथ ही उनका एक ध्वज भी होता है। यह ध्वज उनकी पहचान का प्रतीक माना गया है।
युद्ध में ध्वजों का प्रयोग भी ग्रन्थों में वर्णित है। ऋगवेद संहिता के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में भी ध्वज प्रयोग का उल्लेख है। इनके आकार अनुसार कई नाम थे जैसे कि अक्रः. कृतध्वजः, केतु, बृहतकेतु, सहस्त्रकेतु आदि। ध्वज तथा नगाड़े, दुन्दभि आदि सैन्य गरिमा के चिन्ह माने जाते थे। महाभारत में प्रत्येक महारथी और रथी के पास उसका निजी ध्वज और शंखनाद सेेना नायक की पहचान के प्रतीक थे।
1.ब्रह्मा की ध्वजा :हंस ध्वजा
2.विष्णु की ध्वजा :गरुढ़ ध्वजा
3.महेश की ध्वजा :वृषभ ध्वजा
4.दुर्गा की ध्वजा :सिंह ध्वजा
5.गणेश की ध्वजा :कुम्भ ध्वजा एवं मूषक ध्वजा
6.कार्तिकेय की ध्वजा :मयूर ध्वजा
7.वरुणदेव की ध्वजा :मकर ध्वजा
8.अग्निदेव की ध्वजा :धूम ध्वजा
9.कामदेव की ध्वजा :मकर (मगरमच्छ नहीं) ध्वजा
10.इंद्रदेव की ध्वजा : एरावत और वैजयंति ध्वजा
11.यमराज की ध्वजा :भैंसा ध्वजा
*अर्ध चंद्र :भारत में जगन्नाथ मंदिर के ध्वज सहित शिव और दुर्गा के कई मंदिरों पर अर्ध चंद्र अंकित ध्वज फहराया जाता है। यह अर्द्धचन्द्र शाक्त, शैव और चन्द्रवंशियों के पंथ का प्रतीक चिह्न है। मध्य एशिया में यह मध्य एशियाई जाति के लोगों के ध्वज पर बना होता था। चंगेज खान के झंडे पर अर्द्धचन्द्र होता था। इस्लाम का प्रतीक चिह्न है अर्द्धचन्द्र। अर्धचंद्र अंकित ध्वज पर होने का अपना ही एक अलग इतिहास है।
*नाग ध्वज :बहुत से शैव और नाग मंदिरों पर नाग ध्वज होता है जिस पर नाग का चिह्न अंकित रहता है।
*सूर्य :भगवान सूर्य (विवास्वान) वंशज को सूर्यवंशी कहा गया है। सूर्यवंशियों के ध्वज पर सूर्य का चिन्ह अंकित होता है।
*ओम और स्वस्तिक :केसरिया रंग के हिन्दू ध्वज पर ओम और स्वस्तिक का चिन्ह होता है।
रामायण और महाभारत में ध्वज :अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चित्र अंकित था। कृपाचार्य की ध्वजा पर सांड, मद्रराज की ध्वजा पर हल, अंगराज वृषसेन की ध्वजा पर मोर और सिंधुराज जयद्रथ के झंडे पर वराह की छवि अंकित थी। गुरू द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र था तो घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध विराजमान था। दुर्योधन के झंडे पर रत्नों से बना हाथी था जिसमें अनेक घंटियां लगी हुई थीं। इस तरह के झंडे को जयन्ती ध्वज कहा जाता था। श्रीकृष्ण के झंडे पर गरूड़ अंकित था। बलराम के झंडे पर ताल वृक्ष की छवि अंकित होने से तालध्वज कहलाता था।
महाभारत में शाल्व के शासक अष्टमंगला ध्वज रखते थे। महीपति की ध्वजाओं पर स्वर्ण, रजत एवं ताम्र धातुओं से बने कलश आदि चित्रित रहते थे। इनकी एक ध्वजा सर्वसिद्धिदा कहलाती थी। इस ध्वजा पर रत्नजडित घडियाल के चार जबड़े अंकित होते थे। एक अन्य प्राचीन ग्रंथ में लिखा है कि झंडे के ऊपर बाज, वज्र, मृग, छाग, प्रासाद, कलश, कूर्म, नीलोत्पल, शंख, सर्प और सिंह की छवियां अंकित होनी चाहिए।
वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋग्वेद काल में धूमकेतु झंडे का खूब प्रयोग होता था। वाल्मीकि रामायण में भी शहर, शिविर, रथयात्रा और रण क्षेत्र के बारे में झंडे का उल्लेख मिलता है। निषादराज गुह की नौकाओं पर स्वस्तिक ध्वज लहराता था। महाराज जनक का सीरध्वज और इनके भाई के पास कुषध्वज था। कोविदार झंडे कौशल साम्राज्य का था।
ध्वजों के प्रकार :रणभूमि में अवसर के अनुकूल आठ प्रकार के झंड़ों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विषाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे। विषाल झंडा क्रांतिकारी युद्ध का तथा लोल झंडा भयंकर मार-काट का सूचक था।
*जय :जय झंडा सबसे हल्का तथा रक्त वर्ण का होता था। यह विजय का सूचक माना जाता है। इसका दंड पांच हाथ लम्बा होता है।
*विजय :विजय ध्वज की लम्बाई छह हाथ होती है। श्वेत वर्ण का यह ध्वज पूर्ण विजय के अवसर पर फहराया जाता था।
*भीम :अरुण वर्ण का भीम ध्वज सात हाथ लम्बा होता था और लोमहर्षण युद्ध के अवसर पर इसे फहराया जाता था।
*चपल :चपल ध्वज पीत वर्ण का होता था तथा आठ हाथ लम्बा होता है। विजय और हार के बीच जब द्वन्द्व चलता था, उस समय इसी चपल ध्वज के माध्यम से सेनापति को युद्ध-गति की सूचना दी जाती थी।
*वैजयन्तिक: वैजयन्तिक ध्वज नौ हाथ लम्बा तथा विविध रंगों का होता था।
दीर्घ : दीर्घ ध्वज की लम्बाई दस हाथ होती है। यह नीले रंग का होता है। युद्ध का परिणाम जब शीघ्र ज्ञात नहीं हो सकता था तो उस समय यही झंडा प्रयुक्त होता है।
*विशाल :विशाल ध्वज ग्यारह हाथ लम्बा और धारीवाल होता है।
*लोल :लोल झंडा बारह हाथ लम्बा और कृष्ण वर्ण का होता है।
युद्ध में ध्वजों का प्रयोग भी ग्रन्थों में वर्णित है। ऋगवेद संहिता के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में भी ध्वज प्रयोग का उल्लेख है। इनके आकार अनुसार कई नाम थे जैसे कि अक्रः. कृतध्वजः, केतु, बृहतकेतु, सहस्त्रकेतु आदि। ध्वज तथा नगाड़े, दुन्दभि आदि सैन्य गरिमा के चिन्ह माने जाते थे। महाभारत में प्रत्येक महारथी और रथी के पास उसका निजी ध्वज और शंखनाद सेेना नायक की पहचान के प्रतीक थे।
1.ब्रह्मा की ध्वजा :हंस ध्वजा
2.विष्णु की ध्वजा :गरुढ़ ध्वजा
3.महेश की ध्वजा :वृषभ ध्वजा
4.दुर्गा की ध्वजा :सिंह ध्वजा
5.गणेश की ध्वजा :कुम्भ ध्वजा एवं मूषक ध्वजा
6.कार्तिकेय की ध्वजा :मयूर ध्वजा
7.वरुणदेव की ध्वजा :मकर ध्वजा
8.अग्निदेव की ध्वजा :धूम ध्वजा
9.कामदेव की ध्वजा :मकर (मगरमच्छ नहीं) ध्वजा
10.इंद्रदेव की ध्वजा : एरावत और वैजयंति ध्वजा
11.यमराज की ध्वजा :भैंसा ध्वजा
*अर्ध चंद्र :भारत में जगन्नाथ मंदिर के ध्वज सहित शिव और दुर्गा के कई मंदिरों पर अर्ध चंद्र अंकित ध्वज फहराया जाता है। यह अर्द्धचन्द्र शाक्त, शैव और चन्द्रवंशियों के पंथ का प्रतीक चिह्न है। मध्य एशिया में यह मध्य एशियाई जाति के लोगों के ध्वज पर बना होता था। चंगेज खान के झंडे पर अर्द्धचन्द्र होता था। इस्लाम का प्रतीक चिह्न है अर्द्धचन्द्र। अर्धचंद्र अंकित ध्वज पर होने का अपना ही एक अलग इतिहास है।
*नाग ध्वज :बहुत से शैव और नाग मंदिरों पर नाग ध्वज होता है जिस पर नाग का चिह्न अंकित रहता है।
*सूर्य :भगवान सूर्य (विवास्वान) वंशज को सूर्यवंशी कहा गया है। सूर्यवंशियों के ध्वज पर सूर्य का चिन्ह अंकित होता है।
*ओम और स्वस्तिक :केसरिया रंग के हिन्दू ध्वज पर ओम और स्वस्तिक का चिन्ह होता है।
रामायण और महाभारत में ध्वज :अर्जुन की ध्वजा पर हनुमान का चित्र अंकित था। कृपाचार्य की ध्वजा पर सांड, मद्रराज की ध्वजा पर हल, अंगराज वृषसेन की ध्वजा पर मोर और सिंधुराज जयद्रथ के झंडे पर वराह की छवि अंकित थी। गुरू द्रोणाचार्य के ध्वज पर सौवर्ण वेदी का चित्र था तो घटोत्कच के ध्वज पर गिद्ध विराजमान था। दुर्योधन के झंडे पर रत्नों से बना हाथी था जिसमें अनेक घंटियां लगी हुई थीं। इस तरह के झंडे को जयन्ती ध्वज कहा जाता था। श्रीकृष्ण के झंडे पर गरूड़ अंकित था। बलराम के झंडे पर ताल वृक्ष की छवि अंकित होने से तालध्वज कहलाता था।
महाभारत में शाल्व के शासक अष्टमंगला ध्वज रखते थे। महीपति की ध्वजाओं पर स्वर्ण, रजत एवं ताम्र धातुओं से बने कलश आदि चित्रित रहते थे। इनकी एक ध्वजा सर्वसिद्धिदा कहलाती थी। इस ध्वजा पर रत्नजडित घडियाल के चार जबड़े अंकित होते थे। एक अन्य प्राचीन ग्रंथ में लिखा है कि झंडे के ऊपर बाज, वज्र, मृग, छाग, प्रासाद, कलश, कूर्म, नीलोत्पल, शंख, सर्प और सिंह की छवियां अंकित होनी चाहिए।
वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ऋग्वेद काल में धूमकेतु झंडे का खूब प्रयोग होता था। वाल्मीकि रामायण में भी शहर, शिविर, रथयात्रा और रण क्षेत्र के बारे में झंडे का उल्लेख मिलता है। निषादराज गुह की नौकाओं पर स्वस्तिक ध्वज लहराता था। महाराज जनक का सीरध्वज और इनके भाई के पास कुषध्वज था। कोविदार झंडे कौशल साम्राज्य का था।
ध्वजों के प्रकार :रणभूमि में अवसर के अनुकूल आठ प्रकार के झंड़ों का प्रयोग होता था। ये झंडे थे- जय, विजय, भीम, चपल, वैजयन्तिक, दीर्घ, विषाल और लोल। ये सभी झंडे संकेत के सहारे सूचना देने वाले होते थे। विषाल झंडा क्रांतिकारी युद्ध का तथा लोल झंडा भयंकर मार-काट का सूचक था।
*जय :जय झंडा सबसे हल्का तथा रक्त वर्ण का होता था। यह विजय का सूचक माना जाता है। इसका दंड पांच हाथ लम्बा होता है।
*विजय :विजय ध्वज की लम्बाई छह हाथ होती है। श्वेत वर्ण का यह ध्वज पूर्ण विजय के अवसर पर फहराया जाता था।
*भीम :अरुण वर्ण का भीम ध्वज सात हाथ लम्बा होता था और लोमहर्षण युद्ध के अवसर पर इसे फहराया जाता था।
*चपल :चपल ध्वज पीत वर्ण का होता था तथा आठ हाथ लम्बा होता है। विजय और हार के बीच जब द्वन्द्व चलता था, उस समय इसी चपल ध्वज के माध्यम से सेनापति को युद्ध-गति की सूचना दी जाती थी।
*वैजयन्तिक: वैजयन्तिक ध्वज नौ हाथ लम्बा तथा विविध रंगों का होता था।
दीर्घ : दीर्घ ध्वज की लम्बाई दस हाथ होती है। यह नीले रंग का होता है। युद्ध का परिणाम जब शीघ्र ज्ञात नहीं हो सकता था तो उस समय यही झंडा प्रयुक्त होता है।
*विशाल :विशाल ध्वज ग्यारह हाथ लम्बा और धारीवाल होता है।
*लोल :लोल झंडा बारह हाथ लम्बा और कृष्ण वर्ण का होता है।