रुद्री, लघुरुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र अनुष्ठान
Rudri, Laghu Rudri, Maharudri, Atirudriya Anushthan
रुद्राष्टाध्यायी के पांचवें अध्याय रुद्राध्याय की ११ आवृति (एकादश आवर्तन) और शेष अध्याय की एक आवृति के साथ अभिषेक से एक ‘रुद्री’ होती है इसे ‘एकादशिनी’ भी कहते हैं ।
एकादश (११) रुद्री से लघुरुद्र, ११ लघुरुद्र से महारुद्र और ११ महारुद्र (अर्थात् रुद्राध्याय पाठ के १२१ जप) से अतिरुद्र का अनुष्ठान होता है ।
रुद्री, लघुरुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र से भगवान शिव का अभिषेक, पाठ व होम किया जाता है ।
‘लघुरुद्र’ से शिवलिंग का अभिषेक करने वाला साधक मुक्ति प्राप्त करता है ।
‘महारुद्र’ के पाठ, जप व होम से दरिद्र व्यक्ति भी भाग्यवान बन जाता है ।
‘अतिरुद्र’ पाठ व जप की कोई तुलना नहीं है । इससे ब्रह्महत्या जैसे पाप भी दूर हो जाते हैं ।