जल में नवग्रह शांति के लिए कच दूद, गंगा जल, काले तिल, ध्रुवा आदि दाल लेना अच्छा रहता है
Rudrapaathi रुद्रपाठी
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रूद्राभिषेक पूजन के लिए वेदी: चर्तुलिंगतोभद्र, मण्डल, षोडस मात्रिका मण्डल, शिव परिवार, नवग्रह मण्डल, वास्तु मण्डल, क्षेत्रपाल मण्डल, पंचांग मण्डल आदि इन मण्डलों पर देवताओं का ध्यान, आवाहन, पूजन करके जप यज्ञ अभिषेक सम्पन्न कराया जाता है।
रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों से 'गणेश' का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण 'विष्णु' का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज 'इंद्र' तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान 'सूर्य' का स्तवन है। पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में 'मरुत' और आठवें अध्याय में 'अग्नि' का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है। अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है।
शिवार्चन व रुद्राभिषेक के लिए प्रत्येक माह की शुभ तिथियां इस प्रकार हैं- कृष्णपक्ष में 1, 4, 5, 6, 8, 11, 12, 13 व अमावस्या। शुक्लपक्ष में 2, 5, 6, 7, 9, 12, 13, 14 तिथियां शुभ हैं। शिव निवास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरुरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है। ज्योतिलिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि, प्रदोष, सावन सोमवार आदि पर्वों में शिव वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक (जलाभिषेक) किया जा सकता है।
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रुद्री के एक पाठ से बाल ग्रहों की शांति होती है। तीन पाठ से उपद्रव की शांति होती है। पांच पाठ से ग्रहों की, सात से भय की, नौ से सभी प्रकार की शांति और वाजपेय यज्ञ फल की प्राप्ति और ग्यारह से राजा का वशीकरण होता है और विविध विभूतियों की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार ग्यारह पाठ करने से एक रुद्र का पाठ होता है। तीन रुद्र पाठ से कामना की सिद्धि और शत्रुओं का नाश, पांच से शत्रु और स्त्री का वशीकरण, सात से सुख की प्राप्ति, नौ से पुत्र, पौत्र, धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इसी प्रकार नौ रुद्रों से एक महारुद्र का फल प्राप्त होता है जिससे राजभय का नाश, शत्रु का उच्चाटन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि, अकाल मृत्यु से रक्षा तथा आरोग्य, यश और श्री की प्राप्ति होती है। तीन महारुद्रों से असाध्य कार्य की सिद्धि, पांच महारुद्रों से राज्य कामना की सिद्धि, सात महारुद्रों से सप्तलोक की सिद्धि, नौ महारुद्रों के पाठ से पुनर्जन्म से निवृŸिा, ग्रह दोष की शांति, ज्वर, अतिसार तथा पिŸा, वात व कफ जन्य रोगों से रक्षा, सभी प्रकार की सिद्धि तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
भगवान शंकर का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने का फल जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुशा का जल अर्पित करने से शांति, दही से पशु प्राप्ति, ईख रस से लक्ष्मी की प्राप्ति, मधु और घी से धन की प्राप्ति, दुग्ध से पुत्र प्राप्ति, जल की धारा से शांति, एक हजार मंत्रों के सहित घी की धारा से वंश की वृद्धि और केवल दूध की धारा अर्पित करने से प्रमेह रोग से मुक्ति और मनोकामना की पूर्ति होती है, शक्कर मिले हुए दूध अर्पित करने से बुद्धि का निर्मल होता है, सरसों या तिल के तेल से शत्रु का नाश होता है और रोग से मुक्ति मिलती है। शहद अर्पित करने से यक्ष्मा रोग से रक्षा होती है तथा पाप का क्षय होता है। पुत्रार्थी को भगवान सदाशिव का अभिषेक शक्कर मिश्रित जल से करना चाहिए। उपर्युक्त द्रव्यों से अभिषेक करने से शिवजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। रुद्राभिषेक के बाद ग्यारह वर्तिकाएं प्रज्वलित कर आरती करनी चाहिए। इसी प्रकार भगवान शिव का भिन्न-भिन्न फूलों से पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कमलपत्र, बेलपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प द्वारा पूजन करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। आक के पुष्प चढ़ाने से मान-सम्मान की वृद्धि होती है। जवा पुष्प से पूजन करने से शत्रु का नाश होता है। कनेर के फूल से पूजा करने से रोग से मुक्ति मिलती है तथा वस्त्र एवं संपति की प्राप्ति होती है। हर सिंगार के फूलों से पूजा करने से धन सम्पति बढ़ती है तथा भांग और धतूरे से ज्वर तथा विषभय से मुक्ति मिलती है। चंपा और केतकी के फूलों को छोड़कर शेष सभी फूलों से भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। साबुत चावल चढ़ाने से धन बढ़ता है। गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष प्राप्त होती है।
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रुद्राभिषेक पूजा विधि | Rudrabhishek Pujan Vidhi | Types of Rudrabhishekam | Rudrabhishek puja ke prakar
(1) रूपक या षडंग पाठ - रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं किन्तु नाम अष्टाध्यायी ही क्योंकि इसके आठ अध्यायों में भगवन शिव की महिमा व कृपा शक्ति का वर्णन है ।
शेष दो अध्याय शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है । रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है ।
{प्रथम अंग शिव संकल्प सूक्त , द्वतीय अंग पुरुष सूक्त, तृतीय अंग उत्तर नारायण सूक्त , चतुर्थ अंग अप्रतिरथ इंद्र सूक्त , पंचम अंग सूर्य सूक्त , और रूद्र सूक्त सम्पूर्ण पांचवे अध्याय तक षष्ट अंग इस प्रकार षडंग पाठ बताया गया है ।}
(2) एकादशिनि रुद्री - षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं ।
(3) लघु रुद्र - एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ को लघु रूद्र कहते हैं ।
(4) महारुद्र - लघु रूद्र की ग्यारह आवृत्ति पाठ को महा रूद्र कहा जाता है ।
(5) अतिरुद्र - महारुद्र की ग्यारह आवृति पाठ अतिरुद्र कहा जाता ।
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रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों के साथ भोले शंकर का जलाभिषेक करें। रुद्र पाठ को लघुरुद्र, महारुद्र व अतिरुद्र के रुप में करने का विधान है। पंचम अध्याय के एकादश आवर्तन (11 बार) और शेष अध्यायों के एक आवर्तन के साथ अभिषेक करने से एक ‘रुद्र’ या ‘रुद्री’ होती है। इसे एकादशिनी भी कहते हैं। एकादश रुद्री का पाठ करने से लघुरुद्र होता है और एकादश लघुरुद्र करने से महारुद एवं एकादश (ग्यारह) महारुद्र से अतिरुद्र का अनुष्ठान होता है।
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Eleven recitations of Rudram followed by one recitation of Chamakam is called Ekadasa Rudram. This constitutes one unit of Rudra Homam.
1) 11 Rudram(Namkam) + 01 Chamkam = Ekadasa Rudram(ekadishni)
2) Eleven rounds of Ekadasa Rudram makes = one Laghu Rudram.
1. Ekvar Rudram : Rudram is recited 1 time.
2. Ekadashavar Rudram : 11 times rudram + 1 time chamkam
3. Shatvar Rudram (Laghu Rudra) : 11x11=121
---
1. एक ‘रुद्र’ या ‘रुद्री’ or एकादशिनी = Ch - 05 X 11 times + remaning 1 time
2. एकादश रुद्री or 11 times एकादशिनी = 11 (Ch - 05 X 11 times + remaning 1 time) = लघुरुद्र
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Atirudra consists of eleven recitations of Maha Rudra.One Maha Raudra consists of Eleven recitations of Laghu Rudra.One Laghu Rudra is eleven rounds of Ekadash.One Ekadash is eleven Anuvakas and One Anuvaka consists of eleven Shri Rudra Patam.
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About Shiva
Important Time to perform Worship :
Performing Shiva related remedies during Pradosha time is believed to be more effective especially if it is coinciding with Monday (Soma Pradosha) or Saturday (Shani Pradosha).
Lord Shiva to be worshiped on a daily basis some of the important days earmarked for his worship are
- Monday (Soma Vaara/Induvaara),
- Pradosha time (1½ hours before Sunset) every day
- Maha Pradosha on the 13th lunar day (Trayodasi) of both Sukla and Krishna Paksha; Soma Pradosha (Pradosha associated with Monday); Bhouma Pradosha (Pradosha associated with Tuesday); Shani Pradosha (Pradosha associated with Saturday);
- Maasa Shivarathri day (14th day of dark fortnight – lunar day Chaturdasi);
- Karthika maasam;
- Maha Shivarathri;
- On the lunar day coinciding with Ardra Nakshathra
Thrinethra (Three eyes) : Surya in his right eye and Chandra in his left eye and Agni in his third eye in between the eye brows.
Panchaanana (Five faces) :
- Eeshaana (facing skyward)
- Tatpurusha (facing east)
- Aghora (facing south)
- Vaamadeva (facing north) and
- Sadyojatha (facing west) with each face having three eyes
- Long matter hair spread in the vast sky (Vyomakesha) holding Vishnu Padodbhavi holy Ganga on his head (Gangadhara);
- Throat in blue colour (Neelakantha/Neelagreeva) because he swallowed poison;
- Adored with serpent around his neck (Sarpabhooshana)
- Crescent Moon on his head (Chandrasekhara)
- Nandi Vaahana (mount/vehicle): Vrushabha (sacred Bull)
- Thrisoola (Trident) as his weapon
- Holding a small drum (Damru) in his hand…
- Lord Shiva is always depicted as both a Yogi as well as a householder with Goddess Parvathi always by his side inseparable.
- Lord Rudra is also depicted as Chaturbhuja having four hands with Varada mudra; Abhaya mudra in two hands; Thrisoola in one hand and Deer in another.
- What are the incarnations of Lord Shiva?
- Some of the incarnations (avathara/amsha) of Lord Shiva are Dakshinamurthy; Veerabhadra, Durvasa; Ashwattama, Sukha (son of Lord & Sage Vedavyaasa)…
Who are Ekadasa Rudras?
They are a class of Vedic deities eleven (11) in number along with Dwaadasa (12) Aadityas + Ashta (8) Vasus + Prajapathi + Vashatkara they form a significant group of 33 principal demi-gods. Their nomenclatures differ in different sacred texts and puranas and there is no unanimity in the list. May be they are the same set known by various names. These Ekaadasa Rudras represent Lord Shiva the Maha Rudra. In Bhagawadgita (Vibhoothi Yoga), Lord Sri Krishna says that He is Sankara among Ekaadasa Rudras.
List of Ekaadasa Rudras according to Padma Purana/Srimad Bhagavata are...
Manyu; Manu; Mahanasa; Mahan; Siva; Rta-Dhvaja; Ugra-Reta; Bhava; Kaala; Vaamadeva; and Dhrta-Vrata
Which are the other popular names of Shiva?
Chandrasekhara, Viswanatha, Maheshwara, Eeshwara, Viruupaaksha; Nataraja; Dhuurjati; Pinaaki; Saarangapaani; Thripuraari etc…
Which are the sacred texts about Lord Shiva?
Sacred scripts like Shiva Purana, Linga Purana and Skanda Purana which forms part of the Ashtadasa Puranas scripted by Lord Vedavyaasa have exclusively covered about Lord Shiva.
Which are the sacred hymns to Lord Shiva?
Some of the sacred hymns related to Lord Shiva are…
Shiva Panchakshari (Om! Namah! Sivaayah!)
Maha Mrutyunjaya Manthra
Rudram-Namakam-Chamakam
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About Rudrashtadhyayi
The Rudrashtadhyayi contains eight chapters that emanate from the Shukla Yajur Veda, which are especially beloved to Lord Shiva.
Chapter 1 requests Lord Shiva to bless us with His firm determination.
Chapter 2 contains the famous “Purusha Shukta” in praise of the Supreme Being.
Chapter 3 worships Shiva in the form of the spiritual warrior Indra, the Rule of the Pure.
Chapter 4 worships Shiva as Surya, the Light of Wisdom.
Chapter 5 is well known as the Namakam, where we bow to the many manifestations of Lord Shiva. Chapter 6 we ask Shiva for blessings,
Chapter 7 we make offerings to his various manifestations.
Chapter 8 is famous as the Chamakam describing the divine characteristics of Shiva that are within us.
The final chapter asks for peace and offers peace. Presented in the Sanskrit, Roman phonetic and complete English translation.
The Rudrashtadhyayi has been chanted for thousands of years, by millions of devotees. The feeling and wisdom of these beautiful hymns of praise have been transmitted from generation to generation in the oral tradition of Guru Disciple relationship.
Those who chant the Rudrashtadhyayi can feel the vibrations of the many generations of sincere WORSHIPPERS & can receive the transmission themselves.
Constant repetition of Rudra mantras in the prescribed manner is called JAPA YAGNA . This Japa Yagna is followed by Abhishek
Sri rudram japam is normally done after an elaborate Anga Nyasa (Maha nyasa) Anganyasa which is called MAHANYASA . Sri Rudram is then chanted eleven times and at the end , one Anuvaka of Chamaka Prasnam is chanted . Thus when Sri Rudram is chanted 11 times ,Chamakam is chanted once in full ; i,e.,the first eleven anuvakas of the seventh prasna of the 4th canto of Taitriya Samhita. Simultaneously , Abhishekam is also performed on a 'Shivalinga' chanting Sri rudra eleven times and Chamaka once. The significance is that ,the eleven forms of Lord Shiva viz: Mahadeva, Shiva, Rudra, Shankara, Neelalohita, Eashana, Vijaya, Bhima, Devadeva, Bhavodhbhava and Adtiiyatmaka Rudra,are invoked in eleven Kalasas (kumbham) when eleven Pundits chant Sri Rudra Mantra eleven times each according to the above procedure followed by one anuvaka of Chamaka . Then Hawan is performed chanting Rudra and Chamaka prasana in full and pouring pure cow's ghee into the fire in one unbroken stream chanting Chamaka Prasna called VASORDHARA . Abhishekam is also performed with the water sanctified in the eleven Kumbhams to the lord while the same is also sprinkled on all the devotees assembled to witness the Maharudra Yagna. Then Archana is performed with flowers and 'Bilwa' leaves with various Mantras . The Yagna is then concluded with Managala Arti and Mantra pushpanjali .
In the Rudrikadasini,as it is called ,Sri Rudra Mantra is chanted 121 times by the 11 pandits each chanting 11 times and the chamaka mantra is chanted 11 times,each pandit chanting once in addition to the chant required for Abhisheka ,Archana and Hawan . Eleven such (RUDRIKADASINIS) are required to be performed for a (MAHA RUDRA YAGNA);i.e., 11 pandits duly initiated and trained in Vedas and knowing the various Mantras required for chanting according to proper Swaras. At the time of Rudra Japa , there should be purity in all the three Karanas- Mano ,Vak and Kaya – Mind, speech and body . The Maharudram is usually done for 11 days but to save time depending on local conditions , it may be done in 4 or 5 days according to the availability of pandits,time and resources . Alternatively , 11 groups (GHANAS) of 11 Vedic Pandits each can conduct the Maharudra Yagna in one day also , each group performing one (RUDRIKASASINI).
Eleven Such Maharudra Yagna performed without break i.e., 121 Rudrikadasinis will be required for one ATI RUDRA MAHA YAGNA. These 12 1 Rudrikadasinis can be performed by 121 Vedic Pandits for eleven days consecutively or 11 Vedic Pandits consecutively for 121 days.
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भगवान
शिव के 11 रुद्र अवतारों के नाम क्या हैं / जानिए, भगवान
शिव के 11 रुद्र अवतारों के नाम
पुराण
के अनुसार भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हैं। इनकी उत्पत्ति की
कथा इस प्रकार है-
एक
बार देवताओं और दानवों में लड़ाई छिड़ गई। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं
को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि
के पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे।
उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना
शुरु कर दी। उनकी सच्ची भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर
मांगने को कहा।
कश्यप
मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। शिव
भगवान ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुपों में
प्रकट हुए। यही ग्यारह रुद्र कहलाए। ये देवताओं के दु:ख को दूर करने के लिए प्रकट
हुए थे इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज दिलाया। धर्म शास्त्रों के
अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
ये
इस प्रकार हैं-
1- कपाली 2- पिंगल 3- भीम
4- विरुपाक्ष 5- विलोहित 6- शास्ता
7- अजपाद 8- अहिर्बुधन्य 9- शंभु
10- चण्ड 11- भव
शिवपुराण
के अनुसार एकादश
रुद्र का विवरण :-
शिवपुराण
में शतरुद्रीय संहिता के अन्तर्गत एकादश रुद्रों को शिव के एक अवतार के रूप में
वर्णन है। यहाँ कहा गया है कि कश्यप जी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने
कश्यप जी की पत्नी सुरभी के गर्भ से ग्यारह रुद्रों के रूप में जन्म लिया। यहाँ
दिये गये नाम पूर्वोक्त सभी सूचियों से कुछ भिन्न हैं
1. कपाली
2. पिंगल
3. भीम
4. विरूपाक्ष
5. विलोहित
6. शास्ता
7. अजपाद
8. अहिर्बुध्न्य
9. शम्भु
10. चण्ड
11. भव
शैवागम
के अनुसार एकादश
रुद्र का विवरण :-
शैवागम
में एकादश रुद्रों के नाम इस प्रकार बतलाये गये हैं[15] :-
1. शम्भु
2. पिनाकी
3. गिरीश
4. स्थाणु
5. भर्ग
6. सदाशिव
7. शिव
8. हर
9. शर्व
10. कपाली
11. भव
पौराणिक
मान्यता - महाभारत
के अनुसार एकादश
रुद्र का विवरण :-
पुराणों
में 'रुद्र' को शिव के साथ
समीकृत कर दिया गया है। शिव का ही पर्याय रुद्र को माना गया है। इनकी अष्टमूर्ति
का संकेत तो यजुर्वेद में भी है; परन्तु अनेक पुराणों में इससे सम्बद्ध
कथा विस्तार से दी गयी है।
एकादश
रुद्र
एकादश
रुद्र का विवरण सर्वप्रथम महाभारत में मिलता है। तत्पश्चात् अनेक पुराणों में
एकादश रुद्र के नाम मिलते हैं, परन्तु सर्वत्र एकरूपता नहीं है। अनेक
नामों में भिन्नता मिलती है। बहुस्वीकृत नाम इस प्रकार हैं
1. हर-रुद्र्
2. बहुरूप
3. त्र्यम्बक
4. अपराजित-रुद्र्
5. वृषाकपि
6. शम्भु
7. कपर्दी
8. रैवत
9. मृगव्याध
10. शर्व
11. कपाली
एकादश
रुद्र : नामान्तर
विभिन्न
ग्रन्थों में एकादश रुद्रों के नामों में भिन्नताएँ मिलती हैं। उनका विवरण
निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत द्रष्टव्य है:-
महाभारत
के अनुसार
महाभारत
के आदिपर्व में दो भिन्न अध्यायों में एकादश रुद्र के नाम आये है। दोनों जगह नाम
और क्रम समान हैं
1.मृगव्याध
2.सर्प
3.निऋति
4.अजैकपाद
5.अहिर्बुध्न्य
6.पिनाकी
7.दहन
8.ईश्वर
9.कपाली
10.स्थाणु
11.भव
विभिन्न
पुराणानुसार एकादश
रुद्र का विवरण :-
मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, स्कन्दपुराण
आदि पुराणों में समान रूप से एकादश रुद्रों के नाम मिलते हैं; परन्तु
ये नाम महाभारत के खिल भाग हरिवंश तथा अग्निपुराण, गरुडपुराण आदि
की उपरिलिखित सूची से कुछ भिन्न हैं
1.अजैकपाद
2.अहिर्बुध्न्य
3.विरूपाक्ष
4.रैवत
5.हर
6.बहुरूप
7.त्र्यम्बक
8.सावित्र
9.जयन्त
10.पिनाकी
11.अपराजित
हरिवंश(1.3.49,50) तथा अग्निपुराण (18.41,42) के अनुसार दक्ष-पुत्री सुरभि ने महादेव जी से
वर पाकर कश्यप जी के द्वारा ग्यारह रुद्रों को उत्पन्न किया। यहाँ अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, त्वष्टा
तथा रुद्र को महादेव जी के ही प्रसाद से उत्पन्न भिन्न सन्तानों के रूप में गिना
गया है। इन चारों को गरुड़पुराण में विश्वकर्मा के पुत्र कहा गया है। ऋग्वेद में
अजैकपाद एवं अहिर्बुध्न्य को रुद्र से भिन्न देवता के रूप में स्थान प्राप्त है। पुराणों में दो परम्पराएँ चल रही हैं। एक इन
दोनों को रुद्र के ही रूप मानने की,
तथा दूसरी इन्हें रुद्र से भिन्न मानने
की। हरिवंश में रुद्रों की संख्या सैकड़ों तथा
अग्निपुराण में सैकड़ों-लाखों भी बतायी गयी है, जिनसे यह चराचर
जगत् व्याप्त है।
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