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नव नाग साधना रहस्य एवं नाग पूजन एवं नाग बलि विधान, Nav naag pujan, naag bali, Mansa devi pujan,




नव नाग साधना रहस्य एवं नाग पूजन एवं नाग बलि विधान 


नाग साधना हर प्रकार से श्रेष्ठ मानी गई है | यह जीवन में धन धान्य की बरसात करती है | हर प्रकार से सभी प्रकार के शत्रुओ से सुरक्षा देती है | इससे साधक ज्ञान का उद्य कर अन्धकार पर विजय करते हुए सभी प्रकार के भय से मुक्ति पाता है | इसके साथ ही अगर कुंडली में किसी प्रकार का नाग दोष है तो उससे भी मुक्ति मिलती है | नाग धन तो देते हैं, जीवन में प्रेम की प्राप्ति भी इनकी कृपा से मिल जाती है | हमने यह साधना बहुत समय पहले की थी और यह अनुभव किया कि यह जीवन का सर्वपक्षी विकास करती है | यहाँ मैं उसी अनुभूत साधना को दे रहा हूँ जो नव नागों के नाम से जानी जाती है | इसके साथ ही नाग पूजा विधान और विसर्जन के साथ विष निर्मली मंत्र, सर्प सूक्त आदि  दिया जा रहा है जो आपकी कुंडली में से नाग दोष हटाकर जीवन को सुरक्षा देते हुए सभी दोषों का शमन करता है | चलो जानते हैं कि क्या है 9 विशेष नाग रूप जिन्हें नाग शिरोमणि कहा जाता है | इनकी साधना से क्या क्या लाभ हैं | नाग साधना में किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए | यह साधना अति गोपनीय और महत्वपूर्ण मानी जाती है | इस को करने से जीवन में सभी प्रकार की  उन्नति  मिलती है और जीवन का सर्वपक्षी विकास होता है | मेरा मानना है अगर नाग कन्या साधना से पहले यह नव नागों की साधना कर ली जाए तो नाग कन्या साधना जल्द सफल होती है और जीवन में पूर्ण प्रेम व सुख प्रदान करती है |

नाग साधना के 9 रूप और लाभ

१.  शेष नाग – नाग देवता के इस रूप को आप सभी जानते हैं | भगवान विष्णु के सुरक्षा आसन के रूप में जाने जाते हैं | यह भगवान विष्णु का अभेद सुरक्षा कवच है | जब कोई साधक सच्चे मन से भगवान शेष नाग की उपासना या साधना करता है तो उसके जीवन के सारे दुर्भाग्य का नाश कर देते हैं | उसके जीवन में अखंड धन की बरसात कर देते हैं | अगर जीवन की प्रगति के सभी मार्ग बंद हो गए हैं, अगर जीवन में अचल संपति की कामना है | आय के स्त्रोत नहीं बन रहे तो आप भगवान शेष नाग की साधना से वह सभी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | जो भी साधक भगवान शेष नाग की साधना करता है उसे शेषनाग अभेद सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं | कर्ज से मुक्ति देते हैं, व्यापार में वृद्धि होती है | जीवन में सभी कष्टों का नाश करते हैं | इसके अलावा आसन में स्थिरता प्रदान करते हैं और साधक में संयम आदि गुणो का विकास करते हैं |

२.  कर्कोटक नाग – जिनका जीवन हमेशा भय के वातावरण में गुजर रहा है | जिन्हें शत्रु का भय रहता है | घर में भयपूर्ण माहौल है, तो उनके लिए यह साधना वरदान स्वरूप मानी गई है | इसे संपन्न कर लेने से सभी परिवार के सदस्य पूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हैं और साधक स्वः भी हर प्रकार से सुरक्षित रहता है | सुरक्षा के लिए यह एक बेमिसाल साधना है |

३.  वासुकि नाग – यह भगवान वासुकि का रूप हिमालय का अधिपति है | यह ज्ञान और बुद्धि को प्रदान करते हैं | स्टूडेंट के लिए यह एक अच्छी साधना है | जीवन में सर्वपक्षी विकास और जो ज्ञान चाहते हैं, उन्हे यह साधना मार्गदर्शन करती है | इस साधना को करने से शिक्षा संबंधी जो भी समस्या है और अगर नौकरी नहीं मिलती, नौकरी प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों | हर प्रकार के ज्ञान में अगर कोई बाधा हो, उससे मुक्ति मिलती है | इसके साथ व्यक्ति एक तेजस्वी मस्तिष्क का स्वामी बनता है,  उसे अद्भुत बुद्धि की प्राप्ति होती है और याद्दास्त तेज होती है | विद्या प्राप्ति के क्षेत्र में यह अमोघ साधना मानी  गई है | इसके साथ ही यह साधक को परालोकिक ज्ञान भी देते हैं | 

४.  पदम नाग – जिनके जीवन में विवाह की बाधा है | शादी में बार बार रुकावट आ रही हो तो उनके लिए यह साधना सर्वश्रेष्ठ है | इस साधना को करने से विवाह संबधि समस्या दूर होती है और संतान की प्राप्ति का वरदान भी पद्म नाग देते हैं | इसके साथ साथ अद्भुत सम्मोहन की प्राप्ति भी कराते हैं |

५.  धृतराष्ट्र नाग – नाग देवता का यह रूप जीवन में प्रेम प्राप्ति कराता है | इस साधना से जहां आपके प्रेम संबद्धों में कोई बाधा आ गई हो या आप जीवन में प्रेम संबंध बनाना चाहते हों तो उसमें आ रही हर रुकावट को दूर करती है | प्रेम संबंधों में इस साधना से मधुरता आती है और नवीन प्रेम सम्बन्ध सफल होते हैं |

६.  शंखपाल नाग – देवता का यह रूप संपूर्ण पृथ्वी का अधिपति है | जो साधक जीवन में पृथ्वी भ्रमण की इच्छा रखता हो, विदेश यात्रा करना चाहता हो या विदेश यात्रा में कोई रुकावट आ रही हो तो उसे यह साधना करनी चाहिए | यह सभी यात्रा की रुकावटें दूर करती है | इस साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं | इससे साधक अपने सूक्ष्म स्वरूप से जुड़ जाता है और दूर आध्यात्मिक स्थानों की यात्रा कर लेता है | यह एक श्रेष्ठ साधना मानी गई है | इसी तरह सभी नाग साधना के आध्यात्मिक लाभ भी हैं जिन्हें साधक को खुद अनुभव करना चाहिए | यहाँ मैं आपके कार्य की बाधा को दूर करना और कुछ भौतिक लाभ ही बता रहा हूँ |

७.  कंबल नाग – यह नाग देवता का स्वरूप नाग अधिपति के नाम  से जाना जाता है | अगर जीवन में रोग है, वह दूर नहीं हो रहा तो नाग देवता के इस स्वरूप की आराधना रोग मुक्ति करती है | जीवन में रोग के भय का नाश करते हुए साधक को पूर्ण रोग मुक्ति का वरदान देती है | जिनको कोई न कोई रोग बीमारी है, दवाई असर नहीं देती, रोग पीछा नहीं छोड़ रहा, उन्हे इस साधना से बहुत लाभ मिलता है | यह रोग मुक्त जीवन प्रदान कर साधक को पूर्ण सुरक्षा देती है | इससे असाध्य रोग दूर होते हैं | यह  कायाकल्प सिद्धि आदि भी दे देते हैं | मगर इसके लिए कठोर साधना पूर्ण विधान से करनी पड़ती है |

८.  तक्षक नाग –यह नाग देवता का स्वरूप हर प्रकार के शत्रु का नाश करता है | शत्रु बाधा से मुक्ति देता है | जिन साधकों के जीवन में हर पल शत्रु का भय है | उन्हे यह साधना संपन्न करनी चाहिए | यह हर प्रकार के शत्रु संहार करते हैं | शत्रु दुआरा उत्पन्न की सभी बाधाओं को हर लेते हैं | यह एक बहुत ही तीक्ष्ण साधना है | इसलिए यह साधना साधको को पूर्ण सावधान होकर ही करनी चाहिए |

९.  कालिया नाग – यह नाग देवता का स्वरूप हर प्रकार की तंत्र बाधा दूर करता है | अगर किसी ने आप पर कोई अभिचार कर दिया हो या आप तंत्र बाधा से परेशान हैं तो यह साधना उससे मुक्ति प्रदान करती है | इसके साथ ही यह किसी भी बुरी शक्ति के प्रभाव से मुक्ति देती है और आपकी ग्रह बाधा भी दूर करती है | इसके और भी कई प्रयोग हैं अगर काली नाग को किसी पर छोड़ दिया जाए तो वह उसका नाश कर देते हैं और शत्रु की हर प्रकार की प्रगति को भी रोक देते हैं | अगर शत्रु  ने आप पर कुछ किया है तो उसकी सजा उसे दे देते हैं |

यह नाग साधना के 9 रूप अपने आप में तीक्ष्ण हैं | यह जहां आपको धन आदि लाभ, भौतिक लाभ और आध्यात्मिक लाभ भी देते हैं जैसे आसन की स्थिरता शेष नाग देते हैं और मन के विकारों पर विजय दिलाते हैं | नाग साधना से दूरदर्शिता बढ़ती है | ज्ञान चक्षु विकसित होकर खुल जाते हैं | दूरदर्शन सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, भूगर्भ सिद्धि, कायाकल्प, मनोवांछित रूप परिवर्तन, गंध त्रिमात्र, लोकाधिलोक गमन आदि ऐसी बहुत सी सिद्धियाँ जो नाग कृपा से या नाग साधना से प्राप्त की जा सकती हैं, मगर इसके लिए कठोर साधना करनी पड़ती है | यहाँ भौतिक लाभ प्राप्ति के लिए एक एक दिन की 9 साधना दी जा रही हैं | जो बहुत सरल और जल्द सिद्ध होने वाली हैं | नाग साधना अति शीघ्र फल देती है | इसलिए साधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वाश  से करनी चाहिए | नगेंदर |

नाग पूजन एवं नाग बलि विधान

यह नाग पूजन दुर्लभ माना गया है | यह हर नाग साधना में जरूरी है | जहां तक ज्योतिष का सवाल है, बहुत ज्योतिषी आज कल कालसर्प योग का भय दिखाकर मन चाहा धन लेते हैं और पूजा के नाम से आपसे मोटी रकम ले ली जाती है | इस पूजन से हर प्रकार का नाग दोष और नाग भय हट जाता है | यह बात मैं पूरे विश्वाश से कहता हूँ क्योंकि यह पूजन मैंने सैकड़ों लोगों को कराया है और उनके नाग दोष का शमन किया है | नाग पूजन इसलिए भी देना उचित समझता हूँ क्योंकि आगे आने वाली नव नागों की साधना में यह पूजन आधार स्तंभ का काम करेगा | इसलिए आप अपने मन को हमेशा प्रसन्न रखते हुए नाग साधना करें और पूजन से भी लाभ लें | ऊपर जो नव नाग रहस्य बताया गया है उसमें दी गई हर साधना का पूर्ण लाभ लेने के लिए यह पूजन बहुत महत्व रखता है | यह हर साधना में आएगा और अगर आप कुंडली में नाग दोष की वजह से परेशान हैं,  तो भी यह पूजन करें इससे आपको पूर्ण लाभ मिलेगा | जो साधक साधना करना चाहते हैं वो इस नाग पूजन को साधना के वक़्त करें |

जो सिर्फ कुंडली के दोष निवारण के लिए करना चाहते हैं, उन्हे चाहिए कि नव नाग का निर्माण करें या बाजार से पूजा की दुकान से नाग खरीद लें जिसमें 2 सोने के नाग छोटे छोटे सुनार से लें और 2 चाँदी के सर्प लेने हैं, दो ताँबे के, 2 सिक्के के मतलब लेड के |  एक आटे को गूँथ कर उसका सात मुख का नाग बना लें | उस नाग को थोड़े गरम घी में भिगोकर  उस पर सफ़ेद तिल लगा दें जो पूरे नाग पर लगे हों | उसके फन पर या उस पर  7 कौड़ी रख दें | उसे कुशा के आसन पर रखें या एक केले का पता लेकर उस पर थोड़ी कुशा बिछा कर उस पर रख दें जो वेदी के उपर रहेगा | इसके साथ ही जमीन पर रेत बिछा कर एक पूजन वेदी का निर्माण करें और उसमें नव ग्रह मण्डल और नाग पीठ का निर्माण करें | नाग पीठ में मध्य में एक अष्ट दल कमल बनाए और उसमें जो नाग आप बाजार से लाये हैं उन्हे एक पात्र में स्थापित कर देना है और नव ग्रह यंत्र का निर्माण भी आटे और हल्दी की मदद से बना लेना है | उसी पीठ में स्वस्तिक बनाकर श्री गणेश की स्थापना करनी है | साथ ही ॐ, शिव, षोडश मातृका, पित्र देव, वास्तु देव आदि का स्थापन करना है | सबसे पहले कलश आदि स्थापित कर गुरु पूजन करें | फिर गणेश, ओंकार, शिव ,षोडश मातृका और नव ग्रह, पितृ देव और वास्तु देवता का पूजन यथा योग्य सामर्थ्य अनुसार करें , फिर प्रधान देव पूजन करें |
ध्यान

अनंन्तपद्म पत्राथं फणाननेकतो ज्वलम् |

दिव्याम्बर-धरं देवं, रत्न कुण्डल- मण्डितम् ||

नानारत्न परिक्षिप्तं मकुट’ द्दुतिरंजितम |

फणा मणिसहस्रोद्दै रसंख्यै पन्नगोतमे ||

नाना कन्या सहस्रेण समंतात परिवारितम् |

दिव्याभरण दिप्तागं दिव्यचंदन- चर्चितम् ||

कालाग्निमिव दुर्धषर्म तेजसादित्य सन्निभम |

ब्रह्मण्डाधार भूतं त्वां, यमुनातीर-वासितम ||

भजेsहं दोष शन्त्यैत्र, पूजये कार्यसाधकम |

आगच्छ काल सर्पख्या दोष आदि निवारय ||

आसनम

नवकुलाधिपं शेषं ,शुभ्र कच्छ्प वाहनम |

नानारत्नसमायुकतम आसनं प्रति गृह्राताम ||

पाद्दम

अन्न्त प्रिय शेषं च जगदाधार –विग्रह |

पाद्द्म ग्रहाणमक्तयात्वं काद्रवेय नमोस्तुते ||

अर्घ्यम

काश्यपेयं महाघोरं, मुनिभिवरदिन्तं प्रभो |

अर्घ्यं गृहाणसर्वज्ञ भक्तय मां फ़लंदयाक ||

आचमनीयम्

सहस्र फ़णरुपेण वसुधाधारक प्रभो |

गृहाणाचमनं दिव्यं पावनं च सुशीतलम् ||

पन्चामृतं स्नानम्

पन्चामृतं गृहाणेदं पावनं स्वभिषेचनम् |

बलभद्रावतारेश ! क्षेयं कुरु मम प्रभो ||

वस्त्रम्

कौशेय युग्मदेवेश प्रीत्या तव मयार्पितम |

पन्नगाधीशनागेन्द्र तक्ष्रर्यशत्रो नमोस्तुते ||

यज्ञोपवीतम

सुवर्ण निर्मितं सूत्रं पीतं कण्ठोपाहारकम् |

अनेकरत्नसंयुक्तं सर्पराज नमोस्तुते ||

अथ अंग पूजा

अब चन्दन से  अंग पूजा करें 

सहस्रफ़णाधारिणे नमः पादौ पूजयामि | अनंद्दाये नमः गुल्फ़ौ पूजयामि | विषदन्ताय नमः जंधौ पूजयामि | मन्दगतये नमः जानू पूजयामि | कृष्णाय नमः कटिं पूजयामि | पित्रे नमः नाभिं पूजयामि | श्र्वेताये नमः उदरं पूजयामि | उरगाये नमः स्त्नो पूजयामि | कलिकाये नमः भुजौ पूजयामि | जम्बूकण्ठाय नमः कण्ठं पूजयामि | दिजिह्वाये नमः मुखं पूजयामि | मणिभूषणाये नमः ललाटं पूजयामि | शेषाये नमः सिरं पूजयामि | अनन्ताये नमः सर्वांगान पूजयामि |

गन्धं

कस्तूरी कर्पूर केसराढयं गोरोचनं चागररक्तचन्दनं |

श्री चन्द्राढयं शुभ दिव्यं गन्धं गृहाण नागाप्रिये मयार्तितम् ||

अक्षतान्

काश्मीर पंकलितप्राश्च शलेमानक्षतान शुभान् |

पातालाधिपते तुभ्यं अक्षतान् त्वं गृहाण प्रभो ||

पुष्पं

केतकी पाटलजातिचम्पकै बकुलादिभिः |

मोगरैः शतपत्रश्च पूजितो वरदो भव ||

धूप दीप

सौ भाग्यं धूपं दीपं च दर्शयामि |

नैवेद्दम्

नैवेद्दा गृहातां देव क्षीराज्य दधि मिश्रितम् |

नाना पक्वान्न संयुक्तं पयसं शर्करा युतम् ||

फ़ल् ,ताम्बूल, दक्षिणाम, पुष्पांजलि नमस्कारं —

अनन्त संसार धरप्रियतां कालिन्दजवासक पन्नगाधिपते |

न्मोसिस्म देवं कृपणं हि मत्वा रक्षस्व मां शंकर भूषणेश ||

एक आचमनी जल चढाते हुये अगर कोई कमी रह गई हो तो उसकी पूर्णता के लिये प्रार्थना करें |

अनयापूजन कर्मणा कृतेन अनन्तः प्रियताम् |

राहु केतु सहित अनन्ताद्दावहित देवाः प्रियतम् नमः ||

साधक यहाँ तक पूजन कर साधना कर सकते हैं | जो कुंडली के दोष या कालसर्प दोष शांति के लिए विधान कर रहे हैं वह आगे पूरा कर्म करें |

पूजन के पश्चात आप निम्न नव नाग गायत्री से १००८ आहुति किसी पात्र में अग्नि जला कर अजय आहुतिया देने के बाद दें |

मन्त्र

|| ॐ नवकुलनागाये विदमहे, विषदन्ताय धीमहि तन्नोः सर्पः प्रचोदयात्  ||

       

अथ नाग बलि विधान

उसके बाद नाग बली कर्म करना चाहिये | एक पीपल के पत्ते पर उड़द, चावल,  दही रखकर एक रुई कि बत्ती बना कर रखें और उसका पूजन कर नाग बली अर्पण करें |

प्रधान बली – इस मन्त्र से बली अर्पण करें |

ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो येकेन पृथ्वीमन |

ये अन्तरिक्षे ये दिवोतेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ||

अनन्त वासुकि शेषं पदमं कम्बलमेव च |

धृतराष्ट्रं शंखपालं कालियं तक्षकं तथा,

पिंगल च महानाम मासि मासि प्रकीर्तितम |

अब नैऋत्य दिशा में सभी भूत दिक्पालों को बलि अर्पण करें 

मन्त्र

सर्वदिग्भुतेभ्यो नमः गंध पुष्पं समर्पयामि | सर्व दिग्भुत बलि द्रव्यये नमः गन्ध पुष्मं समर्पयामि | हस्ते जलमादाये सर्व दिग्भुते भ्यो नमः इदं बलि नवेद्यामि |

नमस्कार

सर्व दिग्भुते भ्यो नमः नमस्कार समर्पयामि |

अनया पूजन पूर्वक कर्मणा कृतेन सर्व दिग्भुतेभ्यो नमः |

मन्त्र पुष्पाजलि

ॐ यज्ञेन यज्ञमय देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् | ते.ह् नाक महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ||

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञात कृतानि च |

तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे –पदे ||

 —– इति श्री नाग बलि विधानं संपूर्णं ——-

विश निर्मली करणं

अब निम्न मंत्र पढ़ते हुए हाथ में जल लेकर सभी नागों पर छिडकें और इस मंत्र का 11 बार या 21 बार जप करें |

विश निर्मली मंत्र

सर्पापसर्प भद्र्म ते गच्छ सर्प महा विष |

जनमेजयस्य यज्ञान्ते, आस्तीक वचनं स्मर ||

आस्तीक्स्य वच: श्रुत्वा, यः सर्पो ना निवर्तते |

शतधाभिद्द्ते मूर्ध्नि, शिशं वृक्ष फ़लम् यथा ||  

अथ सर्प वध प्रयशिचत कर्म

अगर मन, ह्रदय  में ऐसा विचार हो कि मेरे दुआरा सर्प वध हुआ है | कई विद्वान् मानते हैं कि कुंडली में सर्प दोष या नाग दोष जिसे लोग काल सर्प योग भी कहते हैं तभी लगता है जब पूर्व जन्म में या स्व अथवा आपके पूर्वजों से सर्प वध हुआ हो | उसकी शांति यह कर्म करने से हो जाती है |

संकल्प

देशकालौ संकीर्त्या सभार्यस्य ममेह जन्मनि जन्मान्तरे वा ज्ञानाद अज्ञानदा जात सर्पवधोत्थ दोष परिहाराथर्म सर्पं संस्कारकर्म करिष्ये |

अब आटे से बनाये हुये नाग को हाथ में अक्षत लेकर प्रार्थना करें – हे पूर्व काल में मरे हुए सर्प आप इस पिण्ड में आ जाएँ और अक्षत चढ़ाते हुए उसका पूजन करें | पूजन आप फूल, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से करें और नमस्कार करते हुए प्रार्थना करें कि हे सर्प आप बलि ग्रहण करो और ऐश्वर्य को बढ़ाओ | फिर उसका सिंचन घी देकर करें | फिर विधि नामक अग्नि का ध्यान हवन कुण्ड में करें और संकल्प करें – कि मैं अपना नाम व गोत्र बोलें और कहें – इस सर्प संस्कार होम रूप कर्म के विषय में देवता के परिग्रह के लिए अन्वाधान करता हूँ | अब “ ॐ भूः स्वाहा अग्नेय इदं “ बोल कर तीन आहुतियाँ दें और “ ॐ भूभूर्व: स्वः स्वाहा “ कह कर चौथी आहुति सर्प के मुख में दें फिर सुरवे में घी लेकर सर्प को सिंचन करें | गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पोषण करें और निम्न प्रार्थना को ध्यान पूर्वक पढ़ें |

जो अन्तरिक्ष पृथ्वी स्वर्ग में रहने वाले हैं, उन सर्पो को नमस्कार है | जो सूर्य की किरण जल, इसमें विराजमान है, उनको नमस्कार है | जो यातुधानों के वाण रूप है, जो वनस्पति और वृक्षों पर सोते हैं  उनको नमस्कार है | हे महा भोगिन रक्षा करो रक्षा करो सम्पूर्ण उपद्रव और दुख से मेरी रक्षा करो |पुष्ट जिसका शरीर है ऐसी पवित्र संतति को मुझे दो | कृपा से युक्त आप दीनों पे दया करने वाले आप शरणागत मेरी रक्षा करो |जो ज्ञान व अज्ञान से मैंने या मेरे पित्रों ने सर्प का वध इस जन्म या अन्य जन्म में किया हो, उस पाप को नष्ट करो और मेरे अपराध को क्षमा करो |  

अब उस नाग को होम अग्नि में भस्म कर दें और स्नान कर लें |

अब जो सोने ताँबे चाँदी के सांप बनाए थे उन्हे नजदीक किसी नदी में विसर्जन करें और निम्न मंत्र 3 बार पढ़ कर विसर्जन कर दें | यह मंत्र अति गोपनीय है |

नाग विसर्जन मंत्र

ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये दिवि येषां वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्रचि र्दशादक्षिणा दशप्रीतची र्दशोदीची र्दशोर्दुध्वाः तेब्भ्यो नमोsअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृडायन्तुते यन्द्रिविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेध्मः ||

जहां दिवि बोला गया है, दूसरी बार जब पढे तो अन्तरिक्ष और तीसरी बार पृथ्वी घोष करें  |

इसके साथ ही इस कर्म में सर्प सूक्त का पाठ करना श्रेष्ठ माना गया है |

श्री सर्प सूक्त 

ब्रह्म्लोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||1||

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||2||

कद्र्वेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||3||

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||4||

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||5||

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||6||

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||7||

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||8||

ग्रामे वा यदि वारन्ये ये सर्पप्रचरन्ति |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||9||

स्मुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जलंवासिन: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||10||     

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: |

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ||11||

यह साधना अखंड धन प्राप्ति के लिए है | यहाँ तक देखा गया है इस साधना से आसन की स्थिरता भी मिलती है | धन मार्ग में आ रही बाधा अपने आप हट जाती है | नाग देवता के इस रूप को आप सभी जानते हैं | भगवान विष्णु के सुरक्षा आसन के रूप में जाने जाते हैं | यह भगवान विष्णु का अभेद सुरक्षा कवच है | जब कोई साधक सच्चे मन से भगवान शेषनाग की उपासना या साधना करता है तो उसके जीवन के सारे दुर्भाग्य का नाश कर देते हैं | उसके जीवन में अखंड धन की बरसात कर देते हैं | अगर जीवन के उन्नति के सभी मार्ग बंद हो गए हैं, अगर जीवन में अचल संपति की कामना है | आय के स्त्रोत नहीं बन रहे तो आप भगवान शेष नाग की साधना से वह आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | जो भी साधक भगवान शेषनाग की साधना करता है उसे अभेद सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं | कर्ज से मुक्ति देते हैं, व्यापार में वृद्धि होती है | जीवन में सभी कष्टों का नाश करते हैं |

ज्योतिष विवेचना

१२ स्थान से ष्ट्म स्थान पश्चात पड़ने वाले ग्रह योग के कारण शेषनाग नामक नाग दोष ( काल सर्प योग ) की सृष्टि होती है |इसके कारण जन्म स्थान व देश से दूरी, सदैव संघर्षशील जीवन, नेत्र पीड़ा, निद्रा न आना तथा अंतिम जीवन रहस्य पूर्ण बना रहता है |ऐसे जातक के गुप्त शत्रु बहुत होते हैं |निराशा अधिक रहती है | मन चाहा काम पूरा नहीं होता | यदि कार्य होता है तो बहुत देरी से होता है |मानसिक उदिग्नता के कारण दिल और दिमाग हमेशा परेशान रहता है | धन की भारी चिंता एवं कर्जा उतारने के प्रयासों में सफलता नहीं मिलती |

यह साधना करने से यह सारे दोष हट जाते हैं और व्यक्ति भय मुक्त, चिंता मुक्त जीवन व्यतीत करता है |

साधना विधि

१.    इसमें साधना सामाग्री जो लेनी है लाल चन्दन की लकड़ी के टुकड़े, नीला और सफ़ेद धागा जो तकरीबन 8 – 8 उंगल का हो | कलश के लिए नारियल, सफ़ेद व लाल वस्त्र, पूजन में फल, पुष्प, धूप, दीप, पाँच मेवा आदि 

२.   सबसे पहले पुजा स्थान में एक बाजोट पर सफ़ेद रंग का वस्त्र बिछा दें  और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछा  कर उस पर एक सात मुख वाला नाग का रूप आटा गूँथ कर बना लें और उसे स्थापित करें | साथ ही भगवान शिव अथवा विष्णु जी का चित्र भी स्थापित करें | उसके साथ ही एक छोटा सा शिवलिंग एक अन्य पात्र में स्थापित कर दें |

३.  पहले गुरु पूजन कर साधना के लिए आज्ञा लें और फिर गणेश जी का पंचौपचार पूजन करें | उसके बाद भगवान विष्णु जी का और शंकर जी का पूजन करें |

४.   पूजन में धूप, दीप, फल, पुष्प,  नैवेद्य आदि रखें | प्रसाद पाँच मेवो का भोग लगाएं |

५.   यह साधना रविवार शाम 7 से 10 बजे के बीच करें |

६.   माला रुद्राक्ष की उत्तम है, और 9 ,11  या 21 माला मंत्र जाप करना है |

७.   दीप साधना काल में जलता रहना चाहिए |

८.  भगवान शेष नाग का पूजन करें | आपको पूर्व दिशा की ओर शेषनाग की स्थापना करनी है और उसके ईशान कोण में मनसा देवी की | अपना मुख भी पूर्व की ओर रखना है |

साधकों की सुविधा के लिए नाग पूजन दिया जा चुका है | अब भगवान शेषनाग का आवाहन करें | हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र पढ़ते हुए शेषनाग पर चढ़ाएं |

आवाहन मन्त्र

ॐ विप्रवर्गं श्र्वेत वर्णं सहस्र फ़ण संयुतम् |

आवाहयाम्यहं देवं शेषं वै विश्व रूपिणं ||

ॐ शेषाये नमः शेषं अवह्यामि | ईशान्यां अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||

अब हाथ में अक्षत लें और प्राण प्रतिष्ठता करें |

प्राण प्रतिष्ठा मन्त्र

 ॐ मनोजुतिर्जुषता माज्यस्य बृस्पतिर्यज्ञ मिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञ ठरंसमिनदधातु |

विश्वेदेवसेऽइहं मदन्ता मों 3 प्रतिष्ठ ||

अस्मै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्मै प्राणाः क्षरन्तु च,

अस्ये देवत्वमर्चाये मामहेति च कश्चन ||

मनसा देवी पूजन

 अब ईशान कोण में एक अष्ट दल कमल अक्षत से बनाएं और उस पर एक ताँबे या मिटटी के कलश पर कुंकुम से दो नाग बनाकर अमृत रक्षणी माँ मनसा की स्थापना करें | कलश पर पाँच प्लव रख कर नारियल पर लाल वस्त्र लपेट कर रख दें | हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर मनसा देवी की स्थापना के लिए निम्न मंत्र पढ़ते हुए अक्षत कलश पर छोड़ दें |

ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः | प्रतिष्ठः || प्रतिष्ठः ||

अब मनसा देवी का पूजन पंचौपचार से करें |

एक जल आचमनी चढ़ाएं 

ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः ईशनानं स्मर्पयामी ||

चन्दन से गन्ध अर्पित करे

ॐ अमृत रक्षणी  साहितायै मनसा दैव्ये नमः गन्धं समर्पयामि ||

पुष्प अर्पित करें 

ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः पुष्पं समर्पयामि ||

धूप

ॐ अमृत रक्षणी  साहितायै मनसा दैव्ये नमः धूपं अर्घ्यामि ||

दीप

ॐ अमृत रक्षणी साहितायै मनसा दैव्ये नमः दीपं दर्शयामि ||

नवैद्य—मेवो या दूध् से बना नैवेद्य अर्पित करें |

ॐ अमृत रक्षणी  साहितायै मनसा दैव्ये नमः नवैद्यं समर्पयामि ||

अब पुनः आचमनी जल अर्पित करें |

ॐ अमृत रक्षणी साहितये मनसा दैव्ये नमः आचमनीयं जलं समर्पयामि ||



अब नाग पूजा बताई हुई विधि से करें | अगर किसी कारण पूर्ण पुजा न कर पायें तो पंचौपचार पूजन कर लें | वैसे साधना का पूर्ण लाभ लेने के लिए पूजन विधि अनुसार ही करें |

अब नीला और सफ़ेद धागा शेष नाग को अर्पित करें यह धागा पूंछ की तरफ ही अर्पित करना है या चढ़ा देना है | रुद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का जप करें |

साधना मंत्र

||  ॐ शं शं श्री शेष नागराजाये नमः  ||

||  Om Sham Sham Shree Shesh Naagraajaaye Namah  ||

जप समाप्ती पर माला को गले में पहन लें और यह माला पहन कर ही सोयें | जब साधना पूर्ण हो जाए तो शिवलिंग का पंचौपचार पूजन करें और पंचामृत से अभिषेक करें, अभिषेक करते हुये आप “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते रहें या शिव कवच से भी अभिषेक किया जा सकता है नहीं तो लघु रुद्राअभिषेक स्तोत्र पढ़ते हुए भी किया जा सकता है | इसके बाद अगर आप चाहो तो सर्प सूक्त का पाठ कर लें | सोते हुये माला गले में रहे | दूसरे दिन आप उस नाग की आकृति को किसी नदी पर जाकर जल प्रवाह कर दें समस्त पूजन सामग्री के साथ जो पूजन किया है वह फूल आदि भी सब प्रवाहित कर दें | कलश का जल घर में छिड़क दें या किसी पौधे को डाल दें | इस प्रकार यह साधना पूर्ण हो जाती है और अखंड धन आने के मार्ग खोल देती है | कर्ज से छुटकारा मिलता है | आर्थिक उन्नति के रास्ते खुलने लग जाते हैं | यह साधना एक अनुभूत साधना है | 

गोगा जाहर पीर का जन्म मंगलवार नवमी तिथि को हुआ जो आज गुगा नवमी के नाम से जानी जाती है | कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन आती है | गोगा जी की कथा बहुत ही दिलचस्प है | काशल और वाशल दो बहने थी | वाशल माता गुरु गोरख नाथ जी की सेवा करती थी | क्योंकि गुरु गोरखनाथ उनके कुल गुरु थे | बहुत समय तक भी जब उनके औलाद नहीं हुई तो गुरु गोरखनाथ जी एक दिन आए और शहर के बाहर एक बाग में डेरा लगा लिया | माता वाशल उनकी शरण मे गई | गुरु गोरखनाथ जी ने सुबह आने को कहा कि सुबह मैं तुझे फल दूंगा | माता ने आकर सारी कथा राजा को सुनाई | उसकी बहन काशल सुन रही थी | माता काशल सुबह माता  वाशल के वस्त्र पहन कर गुरु गोरखनाथ जी के डेरे चली गई और फल ले आई | उस फल से दो जोड़े बच्चे पैदा हुए, जिन्हें जौड़े पीर भी कहते हैं | जब माता वाशल गई तो गुरु गोरखनाथ सारी बात समझ गए और ईश्वर से  कहा कि मेरा वचन खाली न जाए इसलिए मुझे फल देना है | एक बली रूह चाहिए तो ईश्वर से राजे जनमेजे की रूह मांगी | जब वो उस रूह को ले आ रहे थे, वासुकि नाग पहरा दे रहे थे जोकि ईश्वर के दुआरपाल हैं | वहाँ जब नाग ने कहा, हमे भी दिखाओ  क्या ले जा रहे हैं तो जैसे ही गुरु गोरखनाथ जी ने मुट्ठी खोली तो नाग ने सोचा इसने तो हमारे कई कुल नष्ट कर दिये, अगर यह धरती पर चला गया तो और न जाने क्या करेगा और रूह को निगल लिया | उस वक़्त बाल्मीकी जो सफाई का काम करते हैं | वो पीछे खड़ा देख रहा था और उसने झाड़ू से उस नाग पर वार किया | रूह गुरु गोरखनाथ के हाथ में फिर आ गई तो गुरु गोरखनाथ जी ने उसे वरदान दिया कि गुगे की कथा  तुम्हारे खानदान के लोग गायेंगे | तब से हर बाल्मीकि गुगा को पूजता है | गुगे का जन्म राजपूत खानदान में हुआ | उसके जन्म के कुछ दिन बाद ही उसके पिता का स्वर्गवास हो गया | गुगा जी हर रोज नाग बाम्बी पर जाते और नाग निकाल कर मारते रहते और शाहक्ण्डी जिसे नागो के स्थान के रूप मे  पूजा जाता है | वहाँ चादर लेकर सो जाते | इस तरह बचपन से जवानी तक की उम्र पार की | उसके बाद कारु देश बंगाल से गुगे के लिए रिश्ता आया और वो पंडित जब आया तो उसने गुगे का पता पूछा तो लोगो ने उसे बताया के उसमें एक ओलो है मतलब एक आदत है वो शाहकण्डी  जाकर नागों को मारता रहता है | जबकि बंगाल के राजा नाग वंश के थे |  नाग घुमेर माता स्लीयर का मामा  था | वो पंडित गुगे के भाइयों को रिश्ता कर गया और गुगे को यह बात अच्छी न लगी | उसने कहा यह मांग तो मेरी है | वह  गुरु गोरखनाथ जी की शरण में गया | सारी बात बताई तो गुरु गोरखनाथ जी पाताल में गये | गोरखनाथ जी ने तक्षक नाग को कहा कि गुगे की मांग वापिस लानी है | तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप लेकर बंगाल पहुँच गया उस समय माता स्लीयर अपनी सखियों के साथ बाग की सैर को गई थी | तक्षक नाग फूल का रूप लेकर पींघ पर लटक गया और माता स्लीयर को डस लिया | सभी इलाज करने बुलाये गये लेकिन कोई आराम न हुआ | फिर तक्षक नाग ब्राह्मण का रूप लेकर एक कुँए परबैठ गया और कहा कि मैं इलाज कर सकता हूँ | उसे भी दरबार में बुलाया गया | जब उसने डाली का झाड़ा किया तो उससे माता स्लीयर ठीक होने लगी फिर दूसरी डाली करने से सेहत और खराब हो गई तो तब उसने कहा कि इसका मंगना पहले जिस जगह हुआ है वहाँ करना पड़ेगा तभी ठीक होगी | राजा ने मान लिया | उसने लिखके ले लिया और माता को ठीक कर दिया | अब जब राजा ने विचार किया कि वहाँ रिश्ता करना नहीं चाहते तो मंत्रियो की सलाह पर सवा किलो राई बांध दी और कहा, एक दाने के पीछे एक बाराती आए और कहा, अगर बारात कम हुई तो रिश्ता नहीं करेंगे |  इस पर गुरु गोरखनाथ जी ने रिश्ता स्वीकार कर लिया और सभी नागों और देवताओं को बारात में आने का न्योता दे दिया | अब बारात विवाह के लिए रवाना हुई और काले बाग में डेरे लगा लिए तो वहाँ के राजा ने बारात को भगाने के लिए बहुत प्रयत्न किए लेकिन गुरु गोरखनाथ जी के आगे उनका कोई जादू नहीं चला और शादी कर वापिस आ गये | जब बारात शहर के बाहर थी तो गुगे के भाइयों ने हमला कर दिया जो गुरु गोरखनाथ के दिये हुए फल थे |  उन्हे जीतना भी आसान नहीं था | युद्ध हुआ तो गुगे ने उनके सिर काट दिये | बारात घर आ गई तो माता को जब इसका पता लगा कि इसने अपने भाइयों को मार दिया है जो उसकी मासी के पुत्र थे तो गुगे को श्राप दे दिया कि तुझे इस शहर का अन्न जल हराम है | गुगा जी धरती माता को कहने लगे मुझे अपनी शरण में ले लो | धरती माता ने कहा मैं सिर्फ मुसलमान को अपने में समाने की इजाजत देती हूँ | गुगा जी पहले कलमा सीख कर आओ तो गुगा जी खवाजा रत्न हाजी बठिंडे जाकर मुरीद बने | जाहर पीर के नाम से मशहूर हुए  और माता धरती में समा गये | बागड़ राजस्थान में आज भी गुगा माड़ी पर बहुत भारी  मेला लगता है | जहां गुगा जी समाये थे | वह अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं | आने वाले समय से अवगत कराते  हैं | गोगा जी  की साधना काफी उग्र साधना है | क्योंकि इनके साथ सभी वीर नहर सिंह वीर , वावरी वीर और हनुमान , भैरव आदि सभी शक्तियां चलती हैं | नागों का सुल्तान होने से नाग इस साधना में बहुत आते हैं | यूं तो गुगे की कथा बहुत लंबी है | कई दिन लग जाते हैं सुनते सुनते | मैंने तो यहाँ कुछ कुछ बातें ही बताई हैं सिर्फ जानकारी के लिए | श्रावण प्रतिपदा तिथि से इनकी साधना शुरू की जाती है और नवमी तक व्रत रख कर जमीन पर आसन लगाकर साधना की जाती है |  इनकी साधना 40 दिन में पूरी की जाती है | गुगे की साधना करने वाले को नाग कुछ नहीं कहते और उसका साथ देते हैं |  कई शक्तियां जैसे वीर और देवी आदि स्व उसके साथ चलने लग जाती हैं | फिर भी इसकी साधना कठिन नहीं है | पर खतरनाक जरूर है क्योंकि इसमें नाग प्रत्यक्ष आ जाते हैं | बहुत बार महसूस किया गया है, गुगे की साधना करने वाला नागों से संपर्क कर सकता है | उनकी मदद ले सकता है| किसी भी नाग कटे का इलाज भी कर सकता है | मुझे उस्ताद ने बताया था, ऐसी साधना हर एक को नहीं देनी चाहिए इसे सिर्फ परख कर गिने चुने लोगों को ही कराया जाता है जो इसके तेज  को सहन करने योग्य हों सिर्फ उन्हे ही दी जाती है |

 फिर भी श्रद्धा  से करने वालों को सौम्य रूप में दर्शन देते हैं | और अपने भक्तों की आस मुराद पूरी करते हैं | एक बात जरूर कहूँगा कि यह साधना गुरु मुख से लेनी चाहिए और उस्ताद आज्ञा से ही करनी चाहिए| मैं यहाँ साधना दे रहा हूँ | आप इसे अपने गुरु जी की आज्ञा से ही करें या उनसे इस मंत्र संबंधी दीक्षा ले कर करें | यह साधना बहुत तीक्षण है | इसे साधक या तो किसी योग्य निर्देशन में संपन्न करे अथवा गुरु आज्ञा से करे | साधना से मिलने वाले लाभ या नुकसान के लिए हम किसी प्रकार से जिम्मेवार न होंगे | लेखक अपने अनुभव के आधार पर ही साधना लिखता है और हर साधक का अनुभव एक जैसा नहीं होता| इसलिए पुनः सोच विचार कर साधना करें | धन धन गुगा सुल्तान |

साधना विधि एवं नियम

१.  साधना शुरू करने से पहले यह वचन करें कि मैं नाग कभी नहीं मारूंगा और न ही नागों को किसी तरह का कष्ट दूंगा |

२.  यह साधना 41 दिन की है | इसे आप गोगा नवमी से शुरू कर सकते हैं | अगर ऐसा न हो तो किसी भी नौ चंदे रविवार ( शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार ) शुरू कर लें |

३.  इसमें आप सफ़ेद वस्त्र और ऊनी आसन का उपयोग करें | आसन किसी भी रंग का लिया जा सकता है | फिर भी सफ़ेद आसन उत्तम है |

४.  साधना काल में ब्रह्मचर्य अनिवार्य है |

५.  इस मंत्र का 5 माला जाप करना है | इसके लिए काली हकीक माला सबसे उत्तम है |

६.  इसे आप किसी भी नदी किनारे बैठ कर करें या गोगा माड़ी पर भी कर सकते हैं | वह हर शहर में होती है | या फिर नाग बाम्बी के पास बैठ कर करें | घर में अगर करनी हो तो ऐसा कमरा होना चाहिए जिसमे आपके अलावा कोई और न जाए जब तक साधना में हों | मेरे अनुसार तो नदी किनारा सबसे उत्तम है |

७.  साधना शुरू करने से पहले एक जगह गौ गोबर से लीप लें | अगर मकान या फर्श पक्का है तो उसे अच्छी तरह धो कर शुद्ध कर लें और उस पर आसन लगायें और सामने एक बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर गोगा जी का चित्र स्थापित करें | चित्र का पूजन सफ़ेद कलियों से करें और एक फूलों का सेहरा चढ़ाएं, अगरबत्ती लगा दें | एक दिया गऊ के शुद्ध घी का लगा दें | एक लोटा दूध का मीठा मिलाकर पास रखें और जब मंत्र जाप पूरा हो जाये तो उसे नाग बाम्बी में डाल दें और कुछ सफ़ेद फूल चढ़ाकर नमस्कार करें |

८.  इसके लिए भोग में दूध की बनी मिठाई रोज लें और पूजन कर भोग अर्पित करें |

९.  नाग दर्शन होने पर डरें नहीं, वह कुछ नहीं कहेगा | जब पीर दर्शन हों तो उनसे प्रार्थना करें कि वह आप पर अपनी कृपा दृष्टि हमेशा रखें |

१०. साधना समय शाम 7 से 10 बजे का उत्तम है | अगर आप बाहर नदी किनारे कर रहे हैं तो शाम 4 बजे के बाद कभी भी शुरू कर सकते हैं |

११. निम्न मंत्र पढ़कर फूल लेकर गोगा जी के चित्र पर चढ़ाएं और जल हाथ में लेकर चारों और छिड़क दें, इससे रक्षा होगी | कुछ लोगों ने नित्य कर्म की साधना के बारे में पूछा, वो यह मंत्र रोज नित्य कर्म में भी कर सकते हैं | पर मेन साधना उसी तरीके से करनी है अगर पूर्ण लाभ चाहिए |

१२.  इसे पूर्व दिशा की और करें, आपका मुख पूर्व दिशा की तरफ हो |



रक्षा मंत्र 

ॐ नमो आदेश गुरु को जाहरापीर मददगीर रक्षा करनी अंग संग रहना आदेश गोगा जाहरपीर को आदेश गोरख साई को आदेश |



इसके बाद निम्न मंत्र  की 5 माला जप करें |

साधना मंत्र

धन धन गोगा मंडली धन धन गोगा सुलतान |

पर्वत धूड़ा धूमीया गोगा चढ़े जहान ||

गोगे संधी कोठड़ी मली बिशियर नाग |

साधू  चले वनखंडी आ करके रुख तमाम ||

सारे हाथ निवामदें सीता के अहु राम |

दायें  मोढ़े उपर कालका बायें है हनुमत ||

माथे उपर नाहर सिंह  तू नागो का सुल्तान |

फुरों  मंत्र ईश्वरो वाचा ||

आदेश आदेश आदेश गोगा जाहरपीर को आदेश |

यूं तो नाग कड़े 101 होते हैं | इनकी साधना करने वाला हर नाग को अपने वश में कर लेता है | नाग को कीलित भी कर सकता है | नाग को पकड़ भी सकता है और नाग उसे कोई नुक्सान नहीं पहुंचा सकता पर इसके लिए भी कुछ नियम अपनाने पड़ते हैं | जो मंत्र नाग विष उतारने के काम या नाग को वश में करने के काम आते हैं उन्हें नाग कड़ा कहा जाता है | यहाँ एक नाग कड़ा दे रहा हूँ, इसकी साधना करने से नाग को पकड़ने पर वो नुक्सान नहीं करता और इससे किसी नाग डसे इंसान का इलाज भी किया जा सकता है, उसकी जान बचाई जा सकती है |

इसकी साधना बताई हुई विधि से ही करें, अपनी सुविधा से फेर बदल न करें | मैंने महसूस किया है कि कई साधक साधना तो देख लेते हैं फिर अपनी सुविधा अनुसार ही नियम बना लेते हैं और जब सिद्ध नहीं होती तो साधना को दोष दे देते हैं | मैं यह साधना अनुभव की कसौटी पर ही दे रहा हूँ, इसलिए नियम अपनाने जरूरी हैं, वरना न करें |

यह साधना 40 दिन में सिद्ध होती है, यह एक मान्त्रिक साधना है | इसको कर लेने के पश्चात आपके मन में नाग का भय समाप्त हो जायेगा और आप किसी भी नाग को पकड़ने में सक्षम हो जाते हैं | जब यह कड़ा पढ़ा जाता है तो नाग स्वयं आकर समर्पण कर देता है | इसलिए उसे पकड़ने से पहले उसे वचन दें कि मैं आपको कोई नुक्सान नहीं करूँगा, आप बाहर आ जाएँ, मैं आपको यहाँ से ले जाकर बाम्बी में आबाद कर दूंगा | ऐसा वचन करने से नाग शांत भाव से आकर बैठ जायेगा और आप कड़ा या यह कील पढ़ कर उसे कीलित कर सकते हैं | इसके लिए थोड़े आटे में नमक मिलाकर आसपास का इलाका कील दें और लोगों को पीछे हटा दें, कई बार नाग डर कर दूसरी जगह की और भाग पड़ता है | कील लगाने से वो कील में आ जाता है या आप जब यह मंत्र पढ़ते हैं आपके पास आकर बैठ जाता है तो उसे सावधानी से पकड़ कर किसी थैले में डाल दें, वो आपको कुछ नहीं कहेगा | उसे सिर से 4 इंच छोड़ कर भी पकड़ सकते हैं | फिर उसे किसी बाम्बी के पास ले जाकर छोड़ दें और उसे कील मुक्त कर दें | कील मुक्त करने के लिए नाग उत्कीलन भी दिया जा रहा है और दूसरी बात अगर कोई आदमी नाग डसे वाला आ जाये तो इस मंत्र से आप उसका झाड़ा कर सकते हैं या पढ़ कर कटी जगह पर फूँक लगा देने से विष अपने आप निकलने लग जाता है और वो विष मुक्त हो जाता है | इस साधना को जिस दिन शुरू करें, उस दिन नमक न खाएं और जिस दिन पूरी हो जाये उस दिन भी नमक का त्याग करें |

विधि

यह 40 दिन की साधना है, इसे कोई भी कर सकता है | वस्त्र कोई भी पहने और इसे किसी नदी या तालाब आदि के किनारे बैठ कर करें और एक लौटे में दूध मिश्रित जल डालें और उसे अपने पास रखें, घी का दिया लगा सकते हैं और पूजा के लिए फूल आदि पास रखें, अगरबत्ती लगा दें और काली हकीक माला या रुद्राक्ष की माला से एक माला मंत्र जाप करें मतलब 108 बार मंत्र करना है 40 दिन | और जब जाप पूरा हो जाये तो लोटे में जो दूध पास में रखा है उसे नाग की बाम्बी में डाल दें | इस मंत्र को  7 बार पढ़ कर अगर सांप डसे पर फूँक मार दें तो विष उतर जाता है, ऐसा सप्ताह तक या 3 दिन करें, आराम होगा |

नाग कड़ा

जहाँ कहाँ कालू बालू | कीला तेरे होंठ दंद मुख तालु | कीलु तेरी मायी वावा जिन तू जाया | कीलु तेरी नानी दादी जिन तू गोद खिलाया | कीलु तेरे भाई बंदी जिन तू लाड लड़ाया | कीलु तेरी कुल सभाई जिन तू साथ फिराया | साहंसर कील तेरी कुल की जात | कीलु विशियर का परिवार ईसर कीले गोरजा कहे | मेरा कीलिया तीन युग रहे | निके निके कोड़ कुडन्दिये चड़दे सहज कलियान उभर मारी कालिया तू रख लेई सुल्तान |  सास बहू आडंबर किया भर पियाला विष का पिया |  दिल पिंडे को आग लगी तिस पिंडे को छाया | विशे मांदरी परचायेया | झड़ री झड़ विष झड़ नहीं तो खारे खूह में पड़ | दिनी पई भनेवा आया | मासी ते मोसा पाले | गूगा हाथ वरमी घते कढ़े नाग मुख जाले अहिए दहिए तिलक तलोकन कढ़न नाग फरनाले | बुहे ते घत कुंडल बहदे डस पीवन डसियाले | नदी किनारे ढूडन लगे काली कबली आले | काली नागनी सिर बने डोरी | काहे रे विशिया घर जाए करे जोरी | हनुमत ने वंधी पास धरोही हनुमत वीर की | विश जो तु चड़े कपाल उतरे ते उतारू नहीं तो नल मुख गरुड़ को हौकारु | नील मुख गरुड़ छोड़ी लाल विश गई सातवे पाताल | फूरो मंत्र ईसर महादेव की वाचा फुरे | निके निके तिलियर बिसु दई तबाह | हाथ न घते मांदरी चंद वल आखे खार | हुंद पीर साहब का हुंदा पीर साहब का | झड़ री झड़ तू विश झड़ खुह खाते में जा के पड़ | सत्य नाम आदेश गुरु को ||

यह मंत्र बहुत पावरफुल है | इससे किसी भी सांप डसे व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है और इससे नाग को कील भी सकते हैं | जब नाग कील में आ जाता है तो बिना हिले पास बैठा रहता है | उसे उठा के किसी बाम्बी के पास छोड़ देना चाहिए और उस वक़्त उसे कील मुक्त कर देना चाहिए, नहीं तो वो हिल नहीं पायेगा |

नाग कील उत्कीलन (नाग को कील मुक्त करने के लिए )

ॐ गुरु जी को अदेस |

कीलन भ्यी उत्कीलनी वाचा भ्या को वाच ,

सर्पा जायों घर अपने चुंग पुंग चारो मास ||

इस मंत्र से थोड़ी रास्ते की धूल लेकर उसे 7 बार पढ़ लें फिर नाग के ऊपर फेंक दें हल्के से और सावधानी से पीछे हट जाएँ | नाग कील मुक्त होते ही चलने लगेगा और नाग किसी का मित्र नहीं यह आप जानते हैं | इसलिए बिना वहां रुके नमस्कार कर घर वापिस आ जाएँ और फिर रविवार को बाम्बी में ढूध डाल दें |

मन में बहुत ख्याल आ रहे थे पर अब कोई और रास्ता तो नहीं है ! धीरे धीरे कदम भरता हुआ वह जा रहा था ! दिन छुप गया था और कुछ अंधेरा सा हो गया था !

जब वह कुए के पास पहुंचा तो देखता है कि एक बुजुर्ग सफ़ेद वस्त्र पहने उस कुए के पास बनी नाग की बाम्बी के पास बैठा है | उसके समक्ष दीप जल रहा है और वह ध्यान में मंत्र जप किए जा रहा है और वह वहाँ बैठकर उसके उठकर जाने का इंतजार करने लगा, आधा घंटा बीत जाने पर उसने आँखें खोली और माथा टेक कर नाग देवता को प्रणाम किया और सोमनाथ की तरफ देख कर मुस्करा दिया और उसके पास आकर बैठ गया और कहने लगा, मरना किसी मुसीबत का हल नहीं होता, अगर हौसला छोड़ दोगे तो कैसे जीओगे | ऐसे समय तुम परेशान मत हो, मुझे सब पता चल गया है ! तुम्हारी परेशानी क्या है। तुम रोज मेरे पास आ जाया करो, इससे तुम्हारा दिल भी शांत हो जाएगा और मुझे भी साथ मिल जाएगा ! इस तरह सोमनाथ रोज शाम को वहाँ चले जाता और मन का बोझ हल्का कर लेता | उस व्यक्ति ने उसे मंत्र तंत्र का ज्ञान देना शुरू कर दिया और उसे अपने पास बैठा कर साधना कराने लगा | 6 महीने बीत गए और कुछ कुछ सोमनाथ के घर के हालात भी बदलने लगे |

एक दिन अचानक उस बुजुर्ग ने कहा, एक राज मैंने आज तक किसी से नहीं कहा, अगर तुम मुझे वचन दो तो मैं तुम्हे बताता हूँ | सोमनाथ उसे अपना गुरु मानने लगा था इसलिए वचन दे दिया कि आपके जीते जी मैं किसी से ये बात नहीं करूँगा | तब उस बुजुर्ग ने ठंडी सांस ली और कहा बेटा मैं 30 साल से बाबा इच्छाधारी की सेवा कर रहा हूँ और जो इस बाम्बी में नाग के रूप में रहते हैं | इन्होने मेरी सेवा से प्रसन्न होकर मुझे अपनी मणि प्रदान की है ! आज मेरे पास जो भी है सभी इन्हीं का दिया हुया है ! इनकी दी कृपा से ही मैं समय के गर्भ में झांक लेता हूँ ! इसलिए तुम मुझे वचन दो कि मेरे बाद तुम यहां सेवा का कार्य किया करोगे तो सोमनाथ ने हाँ में सिर हिला दिया और फिर आगे उस बुजुर्ग ने कहा कि एक बात ध्यान से सुनो आज से 8 दिन बाद मेरी मृत्यु हो जाएगी | तुम यह मणि लो और जब मुझे शमशान में चिता पे लिटा दें और अग्नि देने वाले हों तो तुम यह मणि मेरे हाथ में किसी तरह पकड़ा देना, इससे मैं दोबारा जिंदा हो जाऊँगा | सोमनाथ नागमणि लेकर अपने घर आ गया और ठीक 8 दिन पूरे होने के बाद वो बुजुर्ग मर गया जोकि उसके गाँव का ही था | जब शमशान में गए तो अंतिम अरदास के वक़्त सोमनाथ ने कहा मैंने इसका मुख देखना है तो चुपके से मुख देखते वक़्त वो मणि उनके हाथ में रख दी और मणि का स्पर्श पाते ही वो बुजुर्ग जिंदा हो गया |  सभी अचंभित हो गए और हर्ष के साथ खुशी का इजहार करने लगे | सभी अपने घरों को वापिस आ गए | इसके बाद वो बुजुर्ग 3 साल तक जिंदा रहा |

जब हम सोमनाथ से मिले तो एक सफल ज़िंदगी जी रहा है और आज भी नवांशहर के नजदीक एक गाँव में अपनी ज़िंदगी जी रहा है | अच्छा कारोबार और अच्छा घर राजाओं की तरह ऐश्वर्य से जीवन जी रहा है | जब हमने मणि के बारे में पूछा तो उसने इस बारे कुछ नहीं कहा और कहने लगा इस बारे में न पुछो, लेकिन उसकी ज़िंदगी ही बदल गई और आज भी वो गाँव के बाहर उसी जगह इच्छाधारी साधना सेवा में रहता है और उसे भूत भविष्य के बारे में सटीक जानकारी मिल जाती है | मेरा मानना है कि आज भी उसके पास नागमणि है पर इस दुनिया के लालच भरे समाज में यह बातें छुपा के रखनी ही बेहतर हैं ! क्योंकि सिद्धि मिलने पर जो प्रदर्शन करता है वो सिद्धि ज्यादा देर उसके पास नहीं रहती |

सोमनाथ हमारा दोस्त है | वहीँ एक बार मैंने उस्ताद से इस बात का जिक्र  किया तो उन्होंने मुझे इच्छाधारी साधना का रहस्य समझाते हुये इसके गुप्त भेद बताए और उनके निर्देशन में मैंने इसे संपन्न किया, जिसके बहुत ही अच्छे और अद्भुत अनुभव हुए और इस साधना को करते कुछ दिन बाद ही ऐसा फील होने लगता है जैसे आपके चारों और नाग आकर बैठ गए हैं और आपकी रक्षा करते हैं |

मैं रोज इस साधना हेतु अपने गाँव के बाहर बने नाग देवता के स्थान पर जाता था और एक दिन साधना करते ध्यान में इतना खो गया कि मेरा सूक्षम शरीर देह से अलग होकर उस बाम्बी में चला गया और सामने नाग माता और बाबा जी दोनों बैठे थे | उन्होंने आशीर्वाद दिया और मुझे एक तरफ इशारा किया, एक रास्ता सा नीचे को बन गया और उनकी आज्ञा लेकर मैं उस तंग सुरंगनुमा रास्ते में गुस गया और कुछ ही समय के बाद मैं एक महल में था, जहां एक तरफ तख्त लगा था और ऐसा लगा कि मैं एक राज दरबार में आ गया हूँ और सामने तख्त पर नागराज मानस देह में बैठे थे और चारों तरफ उनके दरबारी | मैंने सिर झुकाकर प्रणाम किया और मुझे एक तरफ बैठने का इशारा मिला और मैं बैठ गया | तभी मुझे बताया गया तुम नाग लोक में हो और वहाँ बहुत सी बातें हुई जो यहाँ बताना उचित नहीं पर नागलोक के वैभव की तुलना करना मुश्किल है और इस एक साधना ने मुझे ऐसे रहस्यों से परिचित करवाया जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता और मेरा नागलोक से एक संबंध सा बना दिया | यह दुर्लभ साधना है | जो निडर साधक हैं उन्हे ही यह साधना करनी चाहिए क्योंकि इसके अनुभव प्रत्यक्ष होते हैं और साधक बहुत बार नाग देखकर डर जाते हैं | जो इस साधना को करना चाहे मुझसे संपर्क कर सकते हैं |

साधना विधि

 इस साधना को करने से पहले कुछ नियम जो अपनाने चाहिए |

१.  कभी भी नाग न मारने का संकल्प लें कि मैं कभी भी नागों को कष्ट नहीं दूंगा |

२.  गणेश पूजा, गुरु पूजा, शिव पूजा अनिवार्य है |

३.  जहाँ तक हो सके सत्य बोलें |

अब सबसे पहले कोई ऐसा स्थान देखें जहाँ इच्छाधारी का मंदिर या कोई बाम्बी हो | हर शहर में कहीं न कहीं यह स्थान होता है या कोई ऐसी नाग की बाम्बी ढूंढें जहाँ पहले पूजा न हुई हो या कोई पक्की बाम्बी मिल जाये तो बहुत ही उत्तम है | पक्की बाम्बी उसे कहते हैं जो बहुत पुरानी हो और लोग वहां दूध आदि डालते हों |

अपने साथ जो सामग्री लेकर जानी है वो यह है कि एक लोटा दूध, फूल सफ़ेद हों तो बेहतर है, फूल आप कली या चमेली के ले सकते हैं या जो भी मिल जाएँ, ले लें और बताशे जरूर लेकर जाने हैं |

वस्त्र सफ़ेद पहने, आसन कोई भी चलेगा लेकिन काला न हो | सबसे पहले बाम्बी के आसपास सफाई करें और आसन बिछाकर सारा सामान रख दें |

गुरु पूजन और गणेश पूजन करें और शिव पूजन कर आज्ञा लें | फिर बाम्बी पर पूजा करें, नाग देवता को स्मरण कर फूल आदि चढ़ा दें और एक धूप की बत्ती लगा दें और बताशे आदि चढ़ा दें, फिर बैठकर मंत्र जाप करें | घी का दीपक लगा दें और ध्यान रहे साधना काल में दीपक जलता रहे | आसन आदि का जाप कर लिया जाये तो बेहतर है या आसन कीलन भी कर सकते हैं |

इस मंत्र का 11 माला जप करें | मंत्र थोड़ा बड़ा है इसमें 3 घंटे लग सकते हैं | अगर 11 माला न कर पाओ तो 5 या 3 माला कर लें | इसे 41 दिन करें और निश्चित जप जितना रोज करते हो, पूरे 41 दिन चलेगा | अंत में खीर का भोग या बताशे साथ जरूर चढ़ाएं | मंत्र जाप पूर्ण होने पर नमश्कार करें और दूध बाम्बी में डाल दें और घर वापिस आ जाएँ | इसे घर पर बिलकुल न करें | नगेंदर |

अनुभव

इसके अनुभव प्रत्यक्ष होते हैं | बहुत नाग दिखेंगे और कई बार आपके आस पास बैठ जायेंगे | डरें नहीं, कोई कुछ नहीं कहेगा | जब जाप पूरा हो जायेगा, अपने आप चले जायेंगे | कई बार इससे नागकन्या आदि भी आ जाती है, इसलिए संयम रखें और कुछ भी न बोलें जब तक आपकी साधना पूरी न हो | अंत में एक बहुत बड़ा सुनहरी रंग का नाग आपके सामने बाम्बी से निकलकर आएगा, डरें नहीं, हौसला रखें | वो कुछ भी करे, अपना मुख खोल के आपको डराने की कोशिश भी करे तो भी अपने स्थान से उठें नहीं और न ही भागें, नहीं तो साधना भंग हो जाएगी और आपके मनन में दहल पड़ जाएगी, देह कांपने लग जाएगी, नाग हर जगह दिखाई देगा और आप अर्ध मूर्छित से हो जाओगे, लोग आपको पागल समझने लगेंगे | इसलिए बहुत ही ध्यान देने और सावधानी बरतने की जरूरत है | जब आपका जप पूर्ण हो जायेगा तो वो नाग संत रूप में प्रकट होकर आपसे बात करेगा और आप अपने लिए उससे कोई भी वरदान मांग सकते हैं |

इतना होने पर आपकी सहायता नागलोक से होने लगेगी और आपका जीवन धन धान्य से भरपूर हो जायेगा | बहुत बार लाटरी आदि का नंबर मिलेगा और सट्टे या शेयर मार्किट की जानकारी मिलेगी | आप इन अवसरों का सदुपयोग कर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं | इससे कई प्रकार की सिद्धियाँ मिल जाती हैं जैसे किसी के बारे में कोई भी जानकारी, आपके कान में आवाज आया करेगी और चेहरे का आकर्षण बढ़ जायेगा और विशेषकर आपकी आँखें बदल जाएँगी और आँखों में विशेष चमक आ जाएगी | और भी बहुत सारे रहस्य आपके सामने खुल जायेंगे और अगर आपकी साधना सच्चे भाव से हुई है तो आप नागलोक के दर्शन भी कर लेंगे या वहां जा सकोगे | तो मन के सारे भय निकालकर साधना के लिए अपने आप को तैयार करें और विश्वास के साथ साधना करें |

साबर मंत्र

 ॐ नमो गुरू जी को आदेश, धरती माता को आदेश, पोंण पानी को आदेश, शिव गोरख को आदेश, पाताल के बादशाह पाताल के शहंशाह नागों के राजा इशाधारी ईशा पूर्ण करनी मणियों के राजा मणियों में रहना मणि अमर अमृत कुंड के देश पाताल के देश, पाताल के देश में बैठे नागों के राजा रानी ईशा पूर्ण करनी राजा को आदेश, राजा के संतरियों को आदेश, 101 छोह्नी को आदेश, पैरी पैना माथा टेकना वार वार नमश्कार |

सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र :

ध्यानः-
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

।। श्रीनारायण उवाच ।।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः । 
नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः । 
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।

।। फल-श्रुति ।।

इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् । 
यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति । 
वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।

हे लक्ष्मी ! यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।

नाग स्तोत्र
अनंतं  वासुकीं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।  
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।  
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः ।।
तस्मे विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत् 





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